इच्छाओं की चादर अपनी poem by Ankit Sharma

 

मेरा परिचय

इच्छाओं की चादर अपनी
थोड़ी छोटी बना रहा हूं
जिस पर उतर सकूं मैं खरा
वो एक कसौटी बना रहा हूं
इच्छाओं की चादर अपनी ........

दुनिया ने बताया जीवन का
वो हर छोर बदलकर देखा
मगर अंधेरा मिटा नहीं
दीपक की तरह भी जलकर देखा
चलूं भीड़ से अलग दूर मैं
अपनी कोटि (श्रृंखला) बना रहा हूं
जिस पर उतर सकूं मैं खरा .....

सब सरल राह के भोगी है
कोई विकट राह पर बढ़े नहीं
मैं हार नहीं मानूंगा जब तक
खुद संकट चरणों में पड़े नहीं
तो अपने गढ़े हुए शिखरों की
मैं ऊंची चोटी बना रहा हूं
जिस पर उतर सकूं मैं खरा ...

आभार है जो भी साथ रहे
जो दूर रहे प्रतिबंधित थे
कुछ टूटा बिखरा पाया था
हम उसे देख आनंदित थे
तो समय देखकर प्रतिभाओं की
चमक भी खोटी बना रहा हूं
जिस पर उतर सकूं मैं खरा .......


Web Title: ankit sharma


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