ढूंढ़ने निकले ज़माने मे तो हज़ारो मिल गये --Poem by Manpreet Kaur

 ढूंढ़ने निकले ज़माने मे तो हज़ारो मिलगये ,

कई मजनू मिले, कई जुग्नु मिले ,
तो किसीको अलग होने के बहाने मिलगये !!
मुकदर गलत था , या लोग गलत मिले ,
ये सोचके रातो को हम भी ना सो पाये ,
किसीने हमनवा काहा , किसी ने हमसफ़र काहा ,
बस यूहीं बदलते साये थे !!
हाथ मांगा सबने , साथ कोई ना चाहता था ,
हमने वी सोचा क्या, दुआ मे हमने यही मांगा था ,
बदलते वक़्त साथ नज़ारे भी बदल गए ,
वो बदले उनका प्यार बदला फिर हम भी बदल गए ,
बस इसी काश्मकश मे जीते आये है !!
ढूंढ़ने निकले ज़माने मे तो हज़ारो मिलगये ,
कई मजनू मिले , कई जुगनू मिले ,
तो किसीको अलग होने के बहाने मिलगये !



Web Title: manpreet kaur 


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




1 Comments

Previous Post Next Post