हमारी हिंदी - Poem by Namarta Goyal

 

हमारी हिंदी

अपनी मातृभाषा में जो बात है ,

किसी और भाषा में वह बात कहां ?

अपनी बोली में भीगे शब्दों की जो खुशबू है ,

किसी और बोली में वो जज्बात कहां?


बाहर के पकवान खाने से ,

मां के हाथ के खाने की कीमत घटती नहीं ।

उसी तरह कितनी ही भाषा सीख ले पढ़ ले हम ,

पर हिंदी बोले बिना प्यास मिटती नहीं ॥


मां के आंचल - सी हिंदी,

निर्मल गंगा जल - सी हिंदी ,

भारत भूमि की पूजनीय ,

पावन रज -रज सी हिंदी ।


उत्तर -दक्षिण , पूर्व -पश्चिम ,

को जोड़ें , वो माला हिंदी ,

ज्ञान की अथाह खान है जिसमें,

ऐसी पाठशाला हिंदी ॥


अगर एक दिन मस्तक का तिलक बनाते,

बाकी 364 दिन कोई नाम नहीं ।

तो इस गाथा का कोई काम नहीं ,

जब तक मन में सम्मान नहीं । ।


इस मीठी भाषा के बिना ,

हमारी कोई पहचान नहीं ।

आओ इसका सम्मान करें ,

और नई पीढ़ी को बतलाए ,

हिंदुस्तान की शान यही ।

हिंदुस्तान की शान यही ॥


स्वरचित ।

नम्रता गोयल ।


Web Title: Poem by Namarta Goyal

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