राष्ट्र के नाम पे राष्ट्र 'बदनाम' मत करो- Aakash Sagar

कविता का शीर्षक : राष्ट्र के नाम पे राष्ट्र 'बदनाम' मत करो


 राष्ट्र बेच के अब तुम यूं 'नाम' मत करो..

राष्ट्र के नाम पे राष्ट्र 'बदनाम' मत करो..

महान था महान ही रहेगा हमारा भारत,

सिर्फ कहने-कहने से :महान' मत करो..

सब के दिलों में बसी हमारी वसुंधरा मां,

मुझको मेरे प्रांगण से 'बहाल' मत करो..

कबीर के दोहे, ग़ालिब की ग़ज़ल है यहां,

भाई-भाई के खून से 'पहचान' मत करो..

शून्य शब्दकोश को बढ़ाओ तुम अब,

खुदको हिंदी-से अब,'बेजान' मत करो..

तुम नमस्ते,असलम,सत श्री अकाल ही रहने दो,

ये इंग्लिश-विंग्लिश का पहला :स्थान' मत करो..

रोज इतिहास जलाया जा रहा है हमारा,

इस काम को और 'आसान' मत करो..

कुछ खालिस्तानियों को खदेड़ना है तुम्हें,

बस इस मैदान को 'खालिस्तान' मत करो..

आस-पास के गिद्धों की नज़रें है बहुत शेर पे

राष्ट्र अफगानिस्तान-सा 'वीरान' मत करो..

पताका लहरेगा संपूर्ण विश्व में भारत का,

हिंदुस्तान को तुम 'तालिबान' मत करो..

शनै -शनै, भिन्न-भिन्न प्रसून खिलेंगे मगर,

इस स्वर्गलोक को 'कब्रिस्तान' मत करो..

न जाने कितने शीष कटे हमारे जवानों के?

यूं अपनी जवानी को 'कुर्बान' मत करो..

स्वरचित रचना

हास्य-व्यंग्यकार 

आकाश 'सागर'



Web Title: Poem by Aakash Sagar


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