विषय - नारी शक्ति
शीर्षक - अस्मिता एक खिलवाड़
अब क्या कहूं कैसे कहूं ?
बात शुरू कहां से करूं ?
आज मुश्किलों में जान है,
और दांव पर सम्मान है ,
महफूज़ नहीं हूं मैं कहीं भी ,
क्या मेरी अस्मिता एक खिलवाड़ है?
जीवन के हर मोड़ पर मेरी जिंदगी से खेला गया, कभी जला दिया गया,
तो कभी मुझे कोख में ही दफना दिया गया, आखिर क्यों मेरे अस्तित्व से तुम्हें इतना खौफ है,
मैंने तो तुम्हारे अस्तित्व को कभी नहीं ललकारा मैं भी आसमां में उड़ना चाहती हूं,
वर्तिका बनकर इस जहां को रोशन करना चाहती हूं,
पर तुमने हर बार मेरे रक्षक बन कर मुझ पर आघात किया,
कभी तेजाब डाल दिया तो कभी तंदूर में भून दिया,
जब द्रोपदी की लाज पर बात आई तो कृष्ण चले आए,
पर जब मैंने पुकारा तो कृष्ण की आड़ में दुर्योधन चले आए,
जिस पिता ने बेटी को देवी की तरह पूजा होगा, जिसने अपनी गुड़िया को पलकों पर बिठाया होगा,
तब वह पिता भी खूब रोया होगा,
जब उसने लाडली के अर्थी को अपने कंधे पर उठाया होगा,
आज अपनी आयु पर कलयुग भी होगा रोता, काश मैं ना होता तो ये दिन भी ना होता,
पर अब बस अब बस बहुत हुई ये आह ये सिसकियां,
ये आंसू ,ये हिचकियां,
अब बस बहुत हुआ,
अब मैं ना किसी से डरूंगी,
अपने हक के लिए हर बार लडूंगी,
अब ना डरूंगी, ना घबराउंगी,
ना अपनी सुरक्षा के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराउगीं,
हां - हां गलती मेरी थी जो मैंने सब पर विश्वास किया,
और सब ने ही मुझसे विश्वासघात किया,
लेकिन बस अब ना कोई आस इस समाज से रखती हूं,
मैं अपने लिए इंसाफ की आस,
सिर्फ अपने आप से रखती हूं,
अरे ब्रह्म ने भी मेरे बिना इस सृष्टि की कल्पना ना की थी,
और चंद शैतान चले हैं मेरी हस्ती मिटाने,
शायद ये डरते हैं कहीं मैं इनसे आगे निकल जाऊं,
पर मैं तो सदा ही इनसे आगे थी,
क्योंकि ये सृष्टि भी मैं ही हूं,
और मुझसे ही तुम भी हो,
अगर मैं नहीं तो तुम्हारा भी कोई वजूद नहीं।
Web Title: Poem by Hindvi Swar Vartika
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