(नारी शक्ति) poem by Priya Verma

 

(नारी शक्ति)

जिस बेटी से करते थे परहेज तुम,
उसी से आज उम्मीद लगाए बैठे हो तुम,

उड़ने से रोकते रहे जिसे तुम जीवन भर,
उड़ गई लगाकर वो पर,

अपने सिर का बोझ समझते रहे जिसे तुम
आज देश के शीष को गौरवान्वित कर रही है वो

तुमसे ज्यादा सहती है वो समाज को
देखो फिर भी कितना आगे निकल गई है वो

उसने तो खोल लिया खुद की बेढ़ियों को
तुम कब खोलोगे अपने दिमाग को।


Web Title: priya verma


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