सम्मुख प्रश्न ज्वलंत खड़ा,क्यों हर युग में दुखियारी हो ।
तुम जगदात्री, तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
आदम की हौवा हो तुम ही,मनु की सतरुपा तुम्हीं तो हो।
सारी शक्ति है वशीभूत, वह शक्ति अनूपा तुम्हीं तो हो।।
राम रमा रघुवंश मणि की,कौशिल्या महतारी हो।
तुम जगदात्री तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
द्वापर में कंस नराधम से, जब सबने अनगिन कष्ट सहे ।
पुरजन,परिजन,विद्वत जन के,जब प्रतिपल अविरल अश्रु बहे।
तो कारागृह में भी कृष्ण जना, तुम वही देवकी न्यारी हो ।
तुम जगदात्री तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
वीणापाणि बन ज्ञान दिया, संगीत कला सब दान दिया ।
चपला,चंचला,लक्ष्मी बनी, सुख समृद्धि दी,कल्याण किया ।।
भयहारिणी, भवतारिणी तुम, तुम महिषासुर संहारी हो।।
तुम जगदात्री तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
तेरा तो सब कुछ देय रहा, न तुझको कुछ भी हेय रहा ।
संतति हित सदा समर्पित तुम, न श्रेय रहा, न प्रेय रहा।।
भूख, प्यास,आतप,वर्षा,सुख-दुख सब कूछ स्वीकारी हो।।
तुम जगदात्री तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
दानव दहेज की भेंट चढ़ी,दुष्टों के हाथों छली गई ।
अपना सब कुछ तो लुटा दिया,फिर दिव्यलोक को चली गई।।
सेवा व्रत लेकर फिर आई, तुम आंगन की किलकारी हो।।
तुम जगदात्री तुम जगभर्ता, जगपालनकर्ता नारी हो।।
Web Title: Poem by Saumya Tripathi