सुपर बॉस है औरत
घर की हाउसवाइफ नहीं...बॉस होती है औरत
जानेंगे कैसे?
सुबह तड़के उठकर चाय बनाती है औरत,
फिर साफ सफाई करके, नाश्ता, बच्चों की चिंता, टिफिन में क्या बनाये, सारे धर्म निभाती
है औरत
रसोई समेटती है बर्तन धोती है, बच्चों के होमवर्क, कराती है औरत
पति के कागजात संभाल कर रखती है आज की औरत
वीकेंड हो या मंथ का एंड नहीं करती आराम औरत
राशन, बिजली, दूध, बच्चों की फीस, सबका करती है हिसाब
एक एक चीज का करती है प्लानिंग तब जाके फिर करती है उसका भुगतान
किसी को छोटी सी जरूरत हो और ना मिले कोई सामान
तो आती है हर तरफ से आवाज कहां हो भाग्यवान
बिना औरत के बिखरा बिखरा होता है घर आंगन
इसलिए घर की हाउसवाइफ नहीं, सुपर बास होती है औरत।।।
मौलिक एवं स्वरचित साधना मिश्रा
Web Title: poem by Sadhana Mishra
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