नारी शक्ति
दाग अब बेदाग नहीं हो सकता,
इस जुर्म का हिसाब नहीं हो सकता।
कितने सारे ज़ख्म थे इस जिस्म पर,
इसका अंदाज नहीं हो सकता।
वो चाह कर भी चीख नहीं पाई,
वो रोक कर भी रोक नहीं पाई,
अब वो सोचकर सोच पाती भी तो क्या?
और अब लौटकर घर जाती भी तो क्या?
मां बिलख कर रो पड़ेंगी,
और क्या पापा नज़र मिलाएंगे?
खून होगा आंखों में भाई के बस,
और उनसे हम क्या बताएंगे?
चलो! मार देते हैं खुद को, फिर सब आत्महत्या ही बताएंगे,
गलती थी मेरी ये जानकर, शायद इस कद्र नहीं पछताएंगे।
अख़बार में लिखा मिलेगा की मर गई थी,
इस खबर को सुनकर वो दरिंदे जश्न मनाएंगे,
और फिर कभी उनके घरों में ऐसा होगा,
और फिर मरने की खबर आएगी,
रोएंगे,बिलखेंगे,चीखेंगे,चिल्लायेंगे,
और फिर उस पल एक लड़की के दिल का हाल जान पाएंगे।
Web Title: Poem by Vaishnavi
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