"आओ दिपावली तुझे मनाये करोना के छाती पर,
आओ दिपावली तुझे मनाये चुनावों में जाति पर,
चिल्लाने दो ,चिल्लरों को तुम मत कुछ शोर करो,
तुम अन्धरे मन के छिपें तिमिर को कुछ यूं अजोर करो।
जल जाये मन की ईर्ष्या ,द्वेश,मिट जाए जिससे मानसिक क्लेश,
दे दो तुम बस इतना संदेश।
करो प्रहार तुम दुर्गा बनकर ,
मार्केटिंग के लुटेरों पर,
मिटा दो वह अंधकार भी ,
जो पर चुका है ,विवाह के साथ फेरों पर,
तुम तो लक्ष्मी ही हो न जिसकी खुद त्रिदेव रक्षा करते हैं,
फिर भटक गई कैसे तुम जो तुमने त्रिदेवों की रक्षा करने आई हो,
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने आज भी मार्केट को यूं फेश किया,
रह गए यूं पड़े पड़े सस्ते मिट्टी के खिलौने और मिट्टी के दिया,
बिक रहे आज भी अधिक हम सबका कथित चाइनिज़ और पाकिस्तानी पिया।
अब भी आंखें खोलो माता ,नहीं तो तेरा भारत बिक जाएगा ,
कुछ यूं चले ये राजनैतिक षड्यंत्र तो तेरा अस्तित्व भी मिट जाएगा।
व्यापार करें हम विदेशों से और सरकार पर चिल्लाते हैं,
विरोध कर हम चाईनीज का चाउमिन ठूंस ठूंस कर खाते हैं,
दारू ,जुआ,और अश्लीलता से भरकर अपनी सभ्यता को खुद ही लजाते है,
भाव कुछ देखों दलालों का जो तेल (करु या तिल का जिससे मिट्टी का दिया जले) का भाव बढ़ाते हैं,
करके कुछ यूं कालाबजारी , टैक्स टैक्स चिल्लाते हैं।
और जमा कर इन पैसों को निज खातों में
काला धन बनाते हैं ,
और काला धन के खातिर हम प्रधानमंत्री पर चिल्लाते हैं।
और सरकार को दोषी ठहराते है।
जय जवान जय किसान जय हिन्दुस्तान"
Web Title:Poem by Naag Bhushan Tiwari , Vayam official blog content