डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के 50 'प्रेरक वचन'

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भला कौन नहीं जानता है?

आज उनका लगाया संघ रुपी वृक्ष न केवल विशालकाय हो चुका है, बल्कि उससे निकली तमाम शाखाएं - आनुषांगिक संगठन भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रमुख भूमिका सुनिश्चित कर रहे हैं. 

1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे डॉ. हेडगेवार को संघ के स्वयंसेवक परमपूज्य कहकर याद करते हैं, तो उनके सिखाये वचनों ने निश्चित रूप से आधुनिक भारत को संगठित करने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 

यहाँ प्रस्तुत हैं डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार के 50 प्रेरक कोट्स, जो हिंदुत्व के उत्थान और संघ के प्रति उनकी बातों को - उनके दर्शन को सामने रखते हैं.

यह विचार न केवल आपको संघ को और बेहतर तौर से जानने में मदद करेंगे, बल्कि एक देशभक्त के रूप में आपको अपने कर्तव्य का बोध कराने में भी मददगार साबित होंगे.

  1. हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान की धड़कन है, अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है, तो पहले हिंदू संस्कृति को संवारना होगा।
  2. संघ का ध्येय धर्म, समाज तथा संस्कृति का संरक्षण है।
  3. भगवा ध्वज को हम अपने गुरु स्थान पर मानते हैं, उसे देखते ही मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज जो हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
  4. अनुशासन अपने संगठन की नींव है, इसी पर हमें विशाल इमारत को खड़ा करना है। किसी भी भूल से यदि नींव ज़रा सी भी कच्ची रह गई, तो इमारत का उस ओर का भाग ढल जाएगा। इमारत में दरार पड़ जाएगी, और आखिर में वह संपूर्ण इमारत ढ़ह जाएगी।
  5. हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए, हमें शक्ति और संगठन का कार्य करना चाहिए, और अपनी उज्जवल संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।
  6. राष्ट्र रक्षा के समान कोई पुण्य नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई व्रत नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई यज्ञ नहीं - अतः राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।
  7. हिंदुत्व के हित की रक्षा के लिए,  युवाओं की सोच को बदलना संघ का परम लक्ष्य है।
  8. जीवन में निस्वार्थ भावना आए बिना ख़रा अनुशासन निर्माण नहीं होता।
  9. संघ हिंदू समाज की अखंडता और अक्षुण्णता को जीवित रखने के लिए कार्य करने का लक्ष्य रखता है।
  10.  हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है, ऐसी आत्मीयता हर हिंदू के रोम-रोम में व्याप्त होनी चाहिए। यही संघ का मूल मंत्र है।
  11. 'हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे परिवार का सुख है। 'हिंदू पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महा संकट है।
  12. अपने हिंदू समाज को बलशाली और संगठित करने के लिए ही, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन्म लिया है।
  13. सारा हिंदू समाज हमारा कार्य क्षेत्र है। हम सभी हिंदुओं को अपनाएं। कौन सा पत्थर हृदय हिंदू होगा, जो तुम्हारे मृदुल और नम्रता पूर्ण शब्दों को सुनकर इंकार कर देगा।
  14. हिंदुस्तान पर प्रेम करने वाले हर हिंदू से हमारा व्यवहार भाई जैसा ही होना चाहिए। यदि हमारा व्यवहार आदर्श होगा, तो सभी हमारी ओर आकर्षित होंगे।
  15. हमारा कार्य अखिल हिंदू समाज के लिए होने के कारण, उसके किसी भी अंग की उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा। सभी हिंदू भाइयों के साथ, फिर वह किसी भी उच्च या नीच श्रेणी के समझे जाते हों, हमारा बर्ताव हर एक से प्रेम का होना चाहिए। किसी भी हिंदू भाई को नीच समझकर उसे दुत्कारना पाप है।
  16. सभी हिंदुओं को संघ में सम्मिलित होना चाहिए। अलग खड़े रहकर देखते रहने से कुछ भी लाभ नहीं होगा।
  17. ताकत संगठन से आती है, इसीलिए हर हिंदू का कर्तव्य है कि वह हिंदू समाज को मजबूत बनाने के लिए हर संभव कोशिश करे।
  18. हिंदू समाज में तरुण पीढ़ी को हाथ में लेकर, उसके ऊपर संस्कार डालने चाहिए।
  19. हिंदुस्तान के साथ जिस के सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारत माता कहकर अति पवित्र दृष्टि से देखता है, तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नहीं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एक सूत्र में गूंथा हुआ हिंदू समाज ही, यहां का राष्ट्रीय समाज है।
  20. कुछ लोगों को स्वधर्म के संरक्षण में दूसरों का धर्म विद्वेष दिखता है, किंतु अपने धर्म के संरक्षण में दूसरे के धर्म का विरोध कैसे हो सकता है!
  21. किसी भी राष्ट्र के सार्वभौमिकता आधार, उस राष्ट्र की संस्कृति है, और इसीलिए भारत हिंदू राष्ट्र है।
  22. हम किसी पर आक्रमण करने नहीं चले, इसीलिए हमें सदैव सतर्क और सचेत रहना होगा कि हम पर भी कोई आक्रमण ना कर सके।
  23. संघ का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें लोक संग्रह के तत्वों को भली भांति समझ लेना होगा।
  24. संघ केवल स्वयंसेवकों के लिए नहीं, बल्कि संघ के बाहर जो लोग हैं, उनके लिए भी है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि उन लोगों को हम राष्ट्र के उद्धार का सच्चा मार्ग बताएं।
  25. वयोवृद्ध लोगों का संघ कार्य में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। वे संघ के महत्वपूर्ण कार्यों का दायित्व उठा सकते हैं।
  26. यदि प्रौढ़ लोग अपने प्रतिष्ठा और व्यवहार कुशलता का उपयोग संघ कार्य किए तो करें, तो युवा अधिक उत्साह से कार्य कर सकेंगे।
  27. प्रत्येक व्यक्ति को उत्साह और हिम्मत से आगे आना चाहिए, और संघ कार्यों में जुट जाना चाहिए।
  28. केवल हम संघ के स्वयंसेवक हैं, और इतने वर्ष में संघ ने ऐसा कार्य किया है, इसी बात में आनंद तथा अभिमान करते हुए, आलस्य के दिन काटना केवल पागलपन नहीं, अपितु कार्य नाशक भी है।
  29. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खूब सोच समझकर, अपना कार्य क्षेत्र निर्धारित किया है। इसलिए वह अन्य किसी कार्य के झमेले में नहीं पड़ना चाहता।
  30. इस समाज को जागृत एवं संगठित करना ही, राष्ट्र का जागरण एवं संगठन है। यही राष्ट्र धर्म है।
  31. ध्येय पर अविचल दृष्टि रखकर, मार्ग में मखमली बिछौने हो या कांटे बिखरे हों, उनकी चिंता ना करते हुए निरंत आगे ही बढ़ने को दृढ़ निश्चय वाले क्रियाशील तरुण खड़े करने पड़ेंगे।
  32. पूर्ण संस्कार दिए बिना, देशभक्ति का स्थाई स्वरूप निर्माण होना संभव नहीं है, तथा इस प्रकार की स्थिति का निर्माण होने तक सामाजिक व्यवहार में प्रमाणिकता भी संभव नहीं।
  33. भावनाओं के वेग में तथा जवानी के जोश में कई तरुण खड़े हो जाते हैं, परंतु दमन चक्र प्रारंभ होते ही, वे मुंह मोड़ कर सदा के लिए सामाजिक क्षेत्रों से दूर हट जाते हैं। ऐसे लोगों के भरोसे देश की समस्याएं नहीं सुलझ सकतीं।
  34. भला हो जिससे देश का, वह काम करते चलो।
  35. शक्ति केवल सेना या शास्त्रों में नहीं होती, बल्कि सेना का निर्माण जिस समाज से होता है, वह समाज जितना राष्ट्र प्रेमी, नीतिवान और चरित्रवान संपन्न होगा, उतनी मात्रा में वह शक्तिमान होगा।
  36. हमारा विश्वास है कि भगवान हमारे साथ हैं। हमारा काम किसी पर आक्रमण करना नहीं, अपितु अपनी शक्ति को और संगठित करने का है।
  37. सच्चरित्र, आकर्षकता और चातुर्य इन तीनों के त्रिवेणी संगम से ही, संघ का उत्कर्ष होता है। चरित्र के रहते हुए भी चतुराई के अभाव में संघ का कार्य नहीं हो सकता।
  38. चारों ओर कोलाहल में, क्षीण वाणी को लोग अवश्य सुन सकते हैं, पर तभी जब शब्दों के पीछे त्याग और चरित्र हो तो लोग सिर झुकाकर अवश्य सुनेंगे।
  39. अपने निजी मान सम्मान की शुद्र भावनाओं को त्यागकर, हमें प्रेम तथा नम्रता के साथ अपने समाज को सभी भाइयों के पास पहुंचाना होगा।
  40. हमारा निश्चय और स्पष्ट ध्येय ही, हमारी प्रगति का मूल कारण है।
  41. हम लोगों को हमेशा सोचना चाहिए, कि जिस कार्य को करने का हमने प्रण किया है, और जो उद्देश्य हमारे सामने है, उसे प्राप्त करने के लिए हम कितना काम कर रहे हैं।
  42. प्रत्येक अधिकारी व शिक्षक को प्रत्येक के मन में, यह विचार भर देना चाहिए कि मैं स्वयं ही संघ हूं।
  43. प्रत्येक व्यक्ति को, अपने चरित्र पर विचार करना चाहिए। अपने चरित्र को कभी भी कमजोर व क्षीण ना होने दें।
  44. आप इस भ्रम में ना रहें कि लोग हमारी ओर नहीं देखते। वे हमारे कार्य तथा हमारे व्यक्तिगत आचरण की ओर आलोचनात्मक दृष्टि से देखा करते हैं।
  45. हमें केवल अपने कार्य में व्यक्तिगत चाल-चलन की दृष्टि से सावधानी नहीं बरतनी चाहिए, बल्कि सामूहिक व सार्वजनिक जीवन में भी इसका ध्यान रखना चाहिए‌।
  46. बिना कष्ट उठाए और बिना स्वार्थ त्याग किए, हमें कुछ भी फल मिलना असंभव है।
  47. अपने समाज में संगठन निर्माण कर उसे बलवान तथा अजेय बनाने के अतिरिक्त, हमें और कुछ नहीं करना है। इतना कर देने पर सारा काम अपने आप ही हो जाएगा। हमें आज सताने वाली सारी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं आसानी से हल हो जाएंगी।
  48. संघ का लक्ष्य भारत राष्ट्र को पुनः परम वैभव तक ले जाना है।
  49. समरसता के बिना, समता स्थायी नहीं हो सकती, और दोनों के अभाव में राष्ट्रीयता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 
  50. जिस ध्वज को देखते ही, मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज, हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है ।

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