मोहन भागवत जी के 50 'अनमोल वचन'

मोहन भागवत जी विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक स्वयंसेवी संगठन - राष्ट्रीय स्वयंसेवक (RSS) के सर संघचालक (प्रमुख) हैं. देश के लिए जीते हुए, समाज के भिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए मोहन भागवत जी के अलग-अलग जगहों पर भिन्न विचार प्रकट होते रहते हैं, जिसमें से चुनकर 50 प्रेरक कथन (Motivational Quotes) यहाँ, वयं ब्लॉग पर दिए जा रहे हैं, जो आपको सही जीवन जीने की प्रेरणा देंगे.

एक भारतीय स्टार्टअप के तौर पर वयं भी भारत के सांस्कृतिक-संगठनों का अपना वर्चुअल इवेंट होस्टिंग ऐप है. 

मोहन भागवत जी के उपयोगी विचारों को परिवार एवं मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें, साथ ही कमेन्ट बॉक्स में अपने विचार भी लिखें:

  1. संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी है. संगठित होकर ही व्यक्ति तथा राष्ट्र का भाग्य बदला जा सकता है.
  2. समाज के लोगों को एकजुट करना तराजू में मेंढक तोलने के बराबर है. समाज के चार लोग तभी एक साथ होते हैं, जब पांचवा कंधे पर हो. इस प्रकार समाज का विकास संभव नहीं है. आपसी वैमनस्य की भावना से राष्ट्र का कभी भला नहीं हो सकता.
  3. अपना राष्ट्र आत्मवृत्त, ब्रह्मवृत्त, वेद वृत्त रुप से संपन्न हो, इस प्रयोजन से कार्य किया जाना चाहिए.
  4. जब तक शक्ति साथ होती है, तब तक आप विजय श्री का साक्षात करते हैं. कृष्ण के साथ अर्जुन के रहते अर्जुन को सदैव विजयश्री प्राप्त होती रही. बड़ी बड़ी सैन्य टुकड़ियों का सामना किया, किंतु शक्ति रुपी कृष्ण के ना रहते हुए छोटे जंगली डकैतों से भी हार गया, और अपने परिवार की रक्षा नहीं कर सका.
  5. सृष्टि की सारी विविधता में एकता का रूप है.
  6. व्यक्ति का आचरण परिवर्तित तभी होता है, जब कहने वाला स्वयं तपस्वी होता है. सत्य, करुणा, सुचिता और उसके लिए तपस्या जिसके जीवन में होती है, उसके कहने से समाज और धर्म परिवर्तित होता है.
  7. समाज की स्थिति को बदलने के लिए, स्वयं को कृष्ण होना पड़ेगा. कृष्ण किसी के वशीभूत नहीं होते, वे स्वतंत्र हैं. ऐसा ही समाज को होना पड़ेगा. जनता ही जनार्दन होती है.
  8. चारों तरफ से विरोधियों में घिर जाने पर भी जो हिम्मत से कार्य करता है, वही विजयश्री को प्राप्त करता है
  9. राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित होना पड़ेगा. बिना संगठित हुए राष्ट्र कभी परम वैभव पर नहीं पहुंच सकता.
  10. पूर्व में क्या हुआ, बिना इस पर विचार किए वर्तमान में सभी को सामान्य दृष्टि से अपनाना होगा, और उन्हें खोया हुआ सम्मान तथा दायित्व देना होगा, जिसके वे भी अधिकारी हैं.
  11. कभी-कभी विरोधियों का सामना करके भी लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है.
  12. मेरा दृढ़ विश्वास है, एक दिन हम पुनः संगठित होंगे, और एक अखंड भारत का पुनः निर्माण करेंगे.
  13. किसी भी स्वयंसेवक के चाल - चलन की जिम्मेदारी संघ की जवाबदेही बन जाती है, इसे नकारा नहीं जा सकता.
  14. भारत को सुपंथ पर लाना, और उनके प्रयोजन को ध्यान दिलाना यह दायित्व भारत का है, और उसके समाज का है. इसलिए भारत के समाज में यह गतिविधियां नित्य चलनी चाहिए.
  15. कार्य के पथ पर हमेशा कठिनाइयां रहती हैं. उपेक्षा, निराशा, आत्मविश्वास इनके प्रभाव से व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित होता है. नकारात्मक भावों के प्रभाव  में आने से लक्ष्य चूकता है.
  16. समर्थवान की सदैव पूजा होती है, किंतु एक समय ऐसा होता है, जब समर्थवान की शक्तियां उसे भ्रमित कर गलत मार्ग दिखाती हैं.
  17. मनुष्य का पतन उसके अहंकारों तथा अपार शक्तियों पर निर्भर करता है. शक्ति संपन्न होने पर भी वह अहंकार और निंदा का शिकार हो जाता है.
  18. अधिक लोगों का विनाश उत्थान के समय होता है, संघर्ष के समय नहीं. इसीलिए कहा जाता है, उन्नति विनाश का बीज अपने साथ छुपा कर लाती है.
  19. किसी प्रकार की सहायता, सम्मान और सराहना व्यक्तिगत नहीं होती, बल्कि जिस कार्य को हम कर रहे हैं, उसके लिए होती है.
  20. सुख के लिए बाहर की दौड़ लगाना व्यर्थ है. सुख अपने भीतर है, उसे ढूंढने का प्रयास करना चाहिए.
  21. अपनी अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो. मिलजुल कर चलो, क्योंकि अकेला व्यक्ति सुख प्राप्ति नहीं कर सकता.
  22. स्वयं तरकर जो अन्य को तार दे, ऐसे साधुओं का साथ होना चाहिए.
  23. हमारी नाकामी और जाति पंथ विभिन्नता ने, दूसरों को फलने-फूलने का बल दिया. उनकी हैसियत नहीं थी, पर वह हमारे इस कृत्य से बड़े होने लगे.
  24. परमात्मा की इच्छा है कि संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए, सनातन धर्म का उत्थान हो सके. इसके लिए भारत का उत्थान होना चाहिए.
  25. एकांत में योग-साधना, लोकांत में सेवा, परोपकार की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए.
  26. मनुष्य के विचार बदलते रहते हैं, लेकिन हिंदू और हिंदुस्तान स्थाई है.
  27. संघ का विश्वास है कि राजनीति किसी राष्ट्र के जीवन का अभिन्न अंग होती है, परंतु राष्ट्र का संपूर्ण जीवन राजनीति नहीं है.
  28. सामाजिक परिवर्तन केवल राजनीति के माध्यम से नहीं लाए जा सकते. उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जनसाधारण की शक्ति, अर्थात् लोक शक्ति को जागृत करना होगा.
  29. समाज की शक्ति निश्चित रूप से राजनीतिक शक्ति से कहीं ऊपर है.
  30. आतंकवाद व्यक्तिगत होता है, किंतु कुछ धर्म के लोग धर्म का अवसर पाकर उसकी दुहाईयां देकर आतंकवाद फैला रहे हैं, जिससे उनका धर्म आतंकवाद के नाम से चिन्हित हो रहा है.
  31. आतंकवाद शरीर में आए कैंसर के समान है. उसे जितनी जल्दी बाहर निकाल दिया जाए, उतना ही अच्छा शरीर और देश के लिए है.
  32. यह कहना सरासर गलत होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवाद एक विशेष धर्म के कारण ही फल फूल रहा है.
  33. आतंक की सोच रखने वाले मनुष्य या देश कभी प्रगति नहीं कर सकते.
  34. आतंकवाद के नाम पर अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर अन्य धर्मों का अंत करना निंदनीय कार्य है.
  35. हमारे लिए सभी अपने हैं. कोई पराया नहीं, चाहे वह किसी भी जाति, पंथ, मजहब या राजनीति से संबंध रखता हो.
  36. समर्थ की उपेक्षा विश्व में कोई नहीं करता, इसीलिए सामर्थ्यवान होना आवश्यक है.
  37. बिना किसी आलोचना पर ध्यान दिए, अच्छे जख्मों को सहते हुए, हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा. लोग फलदार वृक्ष को ही पत्थर मारते हैं, यह समझना होगा.
  38. संघ मानता है कि हिंदु एक जीवन दृष्टि है, विचार है, जीवन शैली है.
  39. संघ मानता है कि भारत में रहने वाले ईसाई, मुस्लिम भारत के बाहर से नहीं आए. वे सब भारतीय हिंदू ही हैं, क्योंकि सबके पूर्वज एक ही हैं.
  40. हम एक देश के लोग हैं. हमारी आपसी प्रतिस्पर्धा हो सकती है, परन्तु हमारा युद्ध नहीं हो सकता. प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होनी चाहिए. इसमें समाज का विभाजन करना ठीक नहीं है.
  41. संघ को किसी विशेष विचारधारा में बांधने की कोशिश व्यर्थ है. यह किताब और पत्र की सीमाओं में बंधने वाला नहीं है. यह जीवन जीने का मार्ग बताता है. साथ ही जीवन और भविष्य का निर्माण भी करता है. राष्ट्र का उद्धार हो, इसके लिए संघर्ष करता है. संघ विचारधारा से परे है.
  42. भारत हिंदू राष्ट्र है, और यह सत्य है. इसे कोई झुठला नहीं सकता. जब तक इस देश में एक भी हिंदू है, तब तक यह हिंदू राष्ट्र ही रहेगा.
  43. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति लोगों ने गलत प्रचार प्रसार समाज के बीच जाकर किया. ये वे लोग हैं जो समाज को संगठित होते नहीं देखना चाहते. ये लोग संघ में एक साल रहकर देखें ,सारी मानसिक विकृतियां शांत हो जाएंगी.
  44. ना किसी ने हिंदू को बनाया, और ना ही किसी ने भारत को. यह तो अनंत काल से ऐसा ही चला आ रहा है. हिंदू सनातन का प्रतीक है, और भारत का निवासी.
  45. जो भी स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है, वह वहां के लिए निष्ठावान होता है. किसी प्रशासनिक सेवा या राजनीतिक सेवा के क्षेत्र में जाता है, तो वह वहीं के प्रति निष्ठावान होता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति उसकी जवाबदेही नहीं होती, बल्कि सम्बंधित संस्थान के प्रति निष्ठा ही उसका दायित्व होता है.
  46. संघ का स्वयंसेवक स्वेच्छा से अपने संपूर्ण कार्य करते हैं. वे किसी के दबाव में या किसी के दिशा निर्देशों का अनुपालन नहीं करते. वे स्वयं के विवेक से ही कार्य करते हैं.
  47. किसी भी आतंकवादी संगठन को हिंदू समर्थन नहीं देता. हिंदू आतंकवाद का नाम लेकर एक सभ्य समाज को बदनाम करने की साजिश की जा रही है.
  48. जिस तरह शिवाजी को भी औरंगजेब की मांद में जाना पड़ा था. उसी प्रकार हमारे स्वयंसेवक कठिन परिस्थितियों में जाकर भी राष्ट्र निर्माण का कार्य करने को तत्पर हैं.
  49. यदि विशिष्ट गुण वाले स्वयंसेवक 1% देहात में तथा 3% शहरों में हो जाएं, तो उस दिन समाज का वातावरण बदल जाएगा, और समाज सभ्य, शिक्षित और समृद्धिशाली हो जाएगा.
  50. विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आरंभ से ही व्यक्ति विशेष के बजाए उसके कार्य को महत्व देने की परंपरा रही है. इसीलिए संघ ने किसी व्यक्ति को नहीं, बल्कि भगवा ध्वज को अपना गुरु माना है.

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