हमारी हिंदी
अपनी मातृभाषा में जो बात है ,
किसी और भाषा में वह बात कहां ?
अपनी बोली में भीगे शब्दों की जो खुशबू है ,
किसी और बोली में वो जज्बात कहां?
बाहर के पकवान खाने से ,
मां के हाथ के खाने की कीमत घटती नहीं ।
उसी तरह कितनी ही भाषा सीख ले पढ़ ले हम ,
पर हिंदी बोले बिना प्यास मिटती नहीं ॥
मां के आंचल - सी हिंदी,
निर्मल गंगा जल - सी हिंदी ,
भारत भूमि की पूजनीय ,
पावन रज -रज सी हिंदी ।
उत्तर -दक्षिण , पूर्व -पश्चिम ,
को जोड़ें , वो माला हिंदी ,
ज्ञान की अथाह खान है जिसमें,
ऐसी पाठशाला हिंदी ॥
अगर एक दिन मस्तक का तिलक बनाते,
बाकी 364 दिन कोई नाम नहीं ।
तो इस गाथा का कोई काम नहीं ,
जब तक मन में सम्मान नहीं । ।
इस मीठी भाषा के बिना ,
हमारी कोई पहचान नहीं ।
आओ इसका सम्मान करें ,
और नई पीढ़ी को बतलाए ,
हिंदुस्तान की शान यही ।
हिंदुस्तान की शान यही ॥
स्वरचित ।
नम्रता गोयल ।
Web Title: Poem by Namarta Goyal