डिजिटल उपनिवेशवाद- Article by Kaviya kashyap on digital colonialism

"डिजिटल उपनिवेशवाद के बारे में जानने या समझने से पहले हमें डिजिटल इंडिया को बहुत ही बारीकी से समझना होगा। तब जाकर हम डिजिटल उपनिवेशवाद पर चर्चा कर उसपर बात विवाद या कोई निष्कर्ष पर पहुंच पाएंगे।


 जैसा कि हम सब जानते हैं डिजिटल इंडिया की शुरुआत वर्तमान प्रधानमंत्री मिस्टर नरेंद्र मोदी ने एक जुलाई 2015 को दिल्ली के इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में की थी। और हमें यह कहते हुए थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं होगी किया भारत को विकसित किए जाने वाली योजनाओं में से एक सबसे महत्वपूर्ण योजना है । इस योजना की तहत सरकार ने भारत की ग्रामीण समुदाय के लोगों को डिजिटल साक्षर बनाने का काम किया जिसके तहत उसे प्रधानमंत्री सशक्तिकरण नाम की मुहिम चलाई गई। और वाकई यह बहुत अच्छा कदम था सरकार के द्वारा के गवाह हम सब हैं जिस तरह हर तरह से अन्य सरकार द्वारा और यहां के लोगों द्वारा  इस डिजिटल सशक्तिकरण को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला ।।


और बहुत ही कम समय में हमारे देश ने डिजिटल सशक्तिकरण का एक नया स्वरूप देखा । आज जिस तरह से डिजिटलाइजेशन के मामले में भारत बहुत आगे है ”घंटों का काम मिनटों में” इसके भी गवाह हम सब हैं।।


मगर डिजिटलाइजेशन को जिस रफ्तार से हम लोग अपने दैनिक जीवन में अपना रहे हैं , और जिस रफ्तार से हम डिजिटल होते जा रहे हैं इतनी रफ्तार से हम अपनी प्राइवेसी भी खोते जा रहे हैं । 


इसलिए आज हमें बड़े पैमाने पर डिजिटल उपनिवेशवाद के बारे में चर्चा करने की जरूरत है ।



आखिर क्या है यह डिजिटल उपनिवेशवाद ?


बहुत ही आसान शब्दों में कहें तो किसी के आधीन होना। जिस प्रकार आज facebook , whatsup, instagram, microsoft, apple, Amazon और भी बहुत सारी कंपनियां हमारा दिमाग ,हमारी जरूरत को मापकर हमारे अनुसार अपने व्यापार को हमारी सुविधा अनुसार तैयार कर हमारे लिए काम को आसान कर हमें अपनी चपेट में लिए जा रही है , और हम से ही हमारी जानकारी इकट्ठा कर  हमें अपना आदि बना रही है , और धीरे-धीरे हमारी हमारा शौक हमारी और फिर हमारी जरूरत बन हमे अपने चपेट में लेती जा रही है , और कुछ नहीं यही है डिजिटल उपनिवेशवाद। 


और आज फिर हमारा बरसों का इतिहास दोहराया जा रहा है , जैसा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने बरसों पहले आजमाया था और बहुत सफल भी रहे थे। हमें हमारे ही देश में गुलाम बना रखा था। 

हा अगर कुछ बदला है तो  बस बदला है तो तरीका और तकनीक। 


अब हमें ध्यान देना है कि हमें आगे क्या करना है क्योंकि हम इतिहास को तो नहीं बदल सकते मगर इतिहास की गलतियों को दोहराने से रोक सकते हैं जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा हमें भारतीय ऐप को इस्तेमाल करना है और कोशिश करनी है कि ना के बराबर ही हम विदेशी ऐप इस्तेमाल करें इससे हम अपने आप को और अपने देश को किसी के अधीन होने से रोक पाएंगे ।


विदेशी ऐप का इस्तेमाल ना करना हमारे लिए ही नुकसान जनक होगा क्योंकि आज हम लोग हर जगह डिजिटलाइजेशन पर टिके हुए हैं ।

आज पूरी दुनिया digitalised है और हम जानते हैं कि हमारा काम आसान करता है हमारे वाद विवाद को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना , हमें अपने विचारों को प्रकट करना बहुत आसान हो गया है।


तो अब हमें बस ये ध्यान रखने की जरूरत है कि हम बहुत ही लिमिटेड अमाउंट में अपनी प्राइवेसी  इंफॉर्मेशन किसी ऐप को दे।

 क्या मांगा जा रहा है नहीं मांगा इस पर ध्यान दें सोचे विचारे तो ही अलाव करें।


धन्यवाद 


"


Web Title: Article by Kaviya kashyap on digital colonialism   , Vayam official blog content

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post