क्या तृतीय विश्व युद्ध ‘डेटा का युद्ध’ होगा?

एक देश के तौर पर कहाँ खड़े हैं हम?


लेखक: गौरव त्रिपाठी, संस्थापक-सीईओ, वयम् ऐप 
Published on 21 Jan. 2022 (Update: 21 Jan. 2022, 10:50 PM IST)

आज के तकनीकी युग में, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सब कुछ टेक्नोलॉजी के ऊपर निर्भर हो चुका है, और उसमें भी विदेशी कंपनियों का दबदबा खतरे के निशान से भी ऊपर है. अमेरिका की सिलिकॉन वैली का विश्व भर में प्रभाव, भला किसे ज्ञात नहीं है, तो चीनी कंपनियों के वर्चस्व पर भी भारतीय नागरिकों के साथ-साथ, भारत सरकार भी हाई अलर्ट पर है. 

टिकटॉक, पबजी जैसी चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियों का ऑपरेशन भारत में रोकने के बाद भी ऐसी तमाम चीनी-विदेशी कम्पनियां हैं, जो हमें ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर की याद दिलाती हैं.

तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापार करना शुरू किया था, और धीरे-धीरे भारत समेत दुनिया के एक बड़े क्षेत्रफल पर न केवल कब्जा किया, बल्कि किसी गवर्नमेंट की भांति शासन भी किया. दूसरे देशों की रिसोर्स पर कब्ज़ा करना एवं उसके माध्यम से ब्रिटेन में रोजगार देने का सबसे बड़ा जरिया यह कंपनी ही थी. चाय से लेकर कपड़े जैसे कई व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी करती थी.

ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी भी आज की तमाम विदेशी कंपनियों के लॉबिस्ट से कम नहीं थे!

छल - कपट - प्रपंच - फूट डालो, राज करो जैसी तमाम नीतियाँ अमल में लाई गयीं!

धीरे-धीरे एक-एक करके ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहले कुछ लड़ाइयां हारी, किंतु बाद में धीरे-धीरे भारत उनका गुलाम बनता चला गया.

कंपनी की गुलामी एवं अत्याचारों से त्रस्त होकर अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) में भारत में बड़ी बगावत हुई, और कंपनी का डाउनफॉल शुरू हुआ. 1874 ईस्वी में अंग्रेज सरकार ने कंपनी को ऑफिसियल बंद कर दिया, किंतु उसके बाद भी भारत गुलामी के अगले कई दशक गुलामी में काटने को विवश हो गया!

हमें पता है कि कैसे अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद भी हमें पूर्ण आजादी मिलने में 1947 तक का समय लग गया!!

अब जब कि आजादी के 75 वर्ष बीत चुके हैं, हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तब हमारे सामने यह प्रश्न एक बार फिर मुंह बा कर खड़ा है!

आज डिजिटल उपनिवेशवाद - डिजिटल कॉलोनियलिज्म की बात होती है, तो यह ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से कहीं ज्यादा गंभीर स्थिति निर्मित कर रही है.

आपके मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले टॉप टेन एप्लीकेशन की लिस्ट देख लीजिए. यहां आपको विदेशी कंपनियां ही नजर आएंगी, और यह विदेशी कंपनियां निश्चित रूप से आपके डेटा पर जबरदस्त कंट्रोल रखती हैं.

आत्मनिर्भर भारत के मन्त्र के बावजूद चीनी कम्पनियां, भारतीय इकॉनमी में जबरदस्त ढंग से सेंध लगाने में सफल रही हैं. हकीकत तो यही है कि भारत डिजिटल सिक्यूरिटी क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है.


पहले अमेरिकन कंपनियों का वर्चस्व डेटा क्षेत्र में सर्वाधिक था, तो अब इस ईकोसिस्टम पर चाईनीज हावी हैं. वह भी तब, जब चीनी कम्पनियां डेटा कम्प्रोमाइज करने के लिए बदनाम हैं. 

वह चाहे सोशल मीडिया ऐप्स हों, जिसमें टिकटॉक के बैन होने के बाद भी बिगो लाइव, हेलो, लाइकी, वीमेट आदि चाइनीज ऐप भारतीय लोगों के डेटा में सेंधमारी में लगी हुई हैं.

गेमिंग ऐप्स की बात करें तो पबजी के बैन होने के बाद क्लैश ऑफ़ क्लेंस, माफिया सिटी, राइज ऑफ़ किंगडम्स आदि छाये हुए हैं. 

फाइल ट्रान्सफर ऐप्स में शेयरइट, क्सेंदर, ई-कॉमर्स में क्लब फैक्ट्री आदि ने गहराई तक भारतीय इकॉनमी में अपनी पैठ बनाई है. 

हालाँकि, भारत सरकार ने कई चीनी ऐप्स को बैन किया, किन्तु अभी भी इंडियन मार्किट इनसे भरी पड़ी है. 

फेसबुक, व्हाट्सऐप, ज़ूम आदि विदेशी कंपनियों की तो बात ही छोड़ दीजिये. 

आखिर इस बात में क्या शक है कि हमारा डाटा, हमारा धन सब कुछ विदेशी कंपनियों के हाथ में है, और लगातार वह इस पर कण्ट्रोल बढाते जा रहे हैं. ऐसे में सुरक्षा विशेषज्ञ इस बात की आशंका जताते हैं कि अगर विश्व में तृतीय विश्व युद्ध हुआ, तो वह डेटा-वॉर ही होगा.

इंडियन आर्मी, नेवी एवं एयरफ़ोर्स से सेवानिवृत सीनियर मोस्ट ऑफिसर्स द्वारा लिखित “डेटा सॉवरेंटी” किताब में इन बातों पर गहराई से प्रकाश डाला गया है. 

इसके इतिहास, एवं वर्तमान में उसके दुष्प्रभाव से लेकर भविष्य में हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता पर किस तरह से खतरा उत्पन्न हो रहा है, इसके लिए आप एक बार यह पुस्तक अवश्य पढ़ें. 

आखिर कौन भूल सकता है कि 135 करोड़ की आबादी वाला संप्रभु देश भारत जब फेसबुक, ट्विटर जैसी कंपनियों के लिए जवाबदेही का एक कानून लाता है, तो यह कम्पनियां न केवल टाल मटोल करती हैं, बल्कि भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र के सामने एक प्रश्न छोड़ जाती हैं!

वह प्रश्न यह है कि “टेक्नोलॉजी में भारत के पास ऑप्शन ही क्या है”?

निश्चित रूप से डाटा संप्रुभता (Data Sovereignty) में हमारे महान देश को आँख दिखाई जा रही है.

डेटा से इतर भी अगर हम बात करें तो तमाम विदेशी कम्पनियां हम भारतीयों को किसी ऑब्जेक्ट की तरह ही देखते हैं, क्योंकि उन्हें शायद ही इस बात की फिक्र हो कि हमारी संवेदनशीलता का स्तर क्या है, परिवार के बारे में हम क्या सोचते हैं, हमारा कल्चर क्या है, हमारी वैल्यूज क्या हैं... 

इन्हीं प्रश्नों के समाधान की दृष्टि से, 

भारत में, भारत के लिए, भारतवासियों द्वारा टेक प्लेटफार्म देने की कोशिश ‘वयं’ जैसे ऐप अवश्य कर रहे हैं, किंतु क्या हम अपने मस्तिष्क से 'गुलामी की डिजिटल जंजीर' हटाने को तैयार हैं?

यह बड़ा सवाल है!

सीधे फैक्ट की बात करें तो आप यह बात तो जानते ही हैं कि आने वाले दिनों में आमने सामने की सैनिकों की लड़ाई से ज्यादा साइबर वार और डेटा वार का महत्व बढ़ेगा. 

कहा जाता है कि जो व्यक्ति इतिहास भूल जाता है, उसके साथ इतिहास दुहराया जाता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तो है ही, इसके साथ विश्व में भी छठें स्थान पर काबिज है, और यह लगातार ऊपर की ओर बढ़ती जा रही है. वैसे पीपीपी (Purchasing power parities) की बात करें तो विश्व भर में भारत की इकॉनमी तीसरे स्थान पर आती है.

और भी ऐसे कई कारण हैं, जिससे माना जा सकता है कि नए जमाने का भारत अपने मजबूत कदम से विश्व गुरु बनने की दिशा में अग्रसर है.

पर क्या टेक्नोलॉजी भी हम ‘विश्वगुरु’ होने का दावा कर सकते हैं?

कहीं ऐसा तो नहीं है कि आज के ज़माने की विदेशी टेक्नोलॉजी कम्पनियां, चीनी ऐप बनाने वाली कम्पनियां इतिहास की ईस्ट इंडिया कंपनी साबित हो जाएँ?

ऐसे में यह सोचना कहीं से भी नाजायज नहीं लगता है कि कहीं हम डिजिटल उपनिवेशवाद (Digital Colonialism) की तरफ तो नहीं बढ़ रहे हैं?

कहीं ऐसा तो नहीं है कि विश्व गुरु का सपना सजाये, हमारी आंखें जब खुलेंगी, तब तक हम डिजिटल उपनिवेशवाद (Digital Colonialism) के शिकार हो जायेंगे?

भारतीयों का तमाम डाटा विदेशी सर्वर्स पर आज भी स्टोर होता है, यह बेहद चिंता की बात है.

एक आंकड़े के अनुसार 2021 में 50% से अधिक वीडियो कम्युनिकेशन के भारतीय बाज़ार पर सिर्फ और सिर्फ विदेशी कंपनी ज़ूम का कब्जा है.

वीडियो कम्युनिकेशन जैसी सर्विसेज में ज़ूम जैसा कोई एप्लीकेशन आता है, और रातों रात वह भारतीयों के मस्तिष्क पर छा जाता है, तो ऐसे में हमें रूककर सोचने की ज़रुरत है कि डिजिटल उपनिवेशवाद का खतरा कितना वास्तविक है, कितना वृहद् है!

सोचिये, और सोचने के साथ एक्ट भी कीजिये, यही हमारा एवं हम जैसे प्रत्येक भारतीय का धर्म है. 

जय हिन्द.

Web TitleData War Article by Gaurav Tripathi, Founder CEO, Superpro, Vayam App, Will World War III Be a 'War of Data'?

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post