East India Company, Slavery of India and Indian Digital Ecosystem |
आज का जमाना तमाम छोटी बड़ी कंपनियों का है.
आखिर यही कंपनियां ही तो हैं, जो न केवल लोगों को जॉब देती हैं, बल्कि भिन्न तरह के डेवलपमेंट के लिए भी यह उत्तरदायी हैं.
विश्व भर की बात की जाए, तो तमाम विदेशी कंपनियों के साथ भारत की भी टाटा और रिलायंस जैसी कुछ बड़ी कंपनियों ने झंडे गाड़ रखे हैं. हालाँकि, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि विदेशी कंपनियों का दबदबा काफी अधिक है, खासकर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में!
खैर, इस बारे में आगे बात करेंगे, किंतु क्या आपको पता है कि दुनिया की सबसे ताकतवर कंपनी किसे माना जाता है?
वस्तुतः यह कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जानी जाती है, जिसने भारत में पहले तो व्यापार करना शुरू किया, और धीरे-धीरे दुनिया के एक बड़े क्षेत्रफल पर न केवल कब्जा किया, बल्कि किसी गवर्नमेंट की भांति शासन भी किया.
इस कंपनी द्वारा शासित दुनिया के बड़े क्षेत्रफल में खुद भारत भी शामिल था, और सालों साल तक शामिल रहा!
आपको शायद जानकारी ना हो, लेकिन आप यह जान लीजिए कि ईस्ट इंडिया कंपनी के पास लाखों सिपाहियों की फौज थी, तो सीबीआई जैसी अपनी सीक्रेट सर्विस एजेंसी भी थी. कंपनी के अधिकारियों द्वारा लोगों से टैक्स वसूला जाता था. मतलब कारोबार करने वाली कंपनी, एक तरह से सरकार बन गई थी.
आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि आज जो दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां हैं, वह ईस्ट इंडिया कंपनी के मुकाबले छोटी ही हैं.
तत्कालीन समय में समुद्र के मार्ग से सर्वाधिक व्यापार होता था, और न केवल सिंगापुर और विश्व भर के दूसरे बड़े बंदरगाहों की मालिकाना हक यह कंपनी रखती थी, बल्कि भारत में कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे महानगरों की नींव भी ईस्ट इंडिया कंपनी की ही देन मानी जाती है.
परिचर्चा लिंक: https://web.vayam.app/events/hindi_utsav
कहते हैं कि ब्रिटेन में रोजगार देने का सबसे बड़ा जरिया यह कंपनी ही थी. चाय से लेकर कपड़े जैसे कई व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी करती थी.
इतिहासकार बताते हैं कि आज के समय में जैसे मल्टीनेशनल कंपनियों में लोग नौकरी करना चाहते हैं, ठीक वैसे ही उस वक्त भी ईस्ट इंडिया कंपनी में जॉब पाने के लिए लोग रेस में जुटे रहते थे. हालांकि हर कोई उसमें जॉब नहीं कर पाता था. आज की तमाम मल्टीनेशनल कंपनियों में जैसे डायरेक्टर होते हैं, वैसे ही उस कंपनी में भी 24 डायरेक्टर थे.
लंदन में इस कंपनी का हेड क्वार्टर था, और कहा जाता है कि काबिलियत के अलावा बेहद सोर्स - सिफारिश वाले लोगों को ही यहां पर जॉब मिलती थी.
तबके समय में इंग्लैंड में महारानी एलिजाबेथ प्रथम शासन करती थीं.
कहा जाता है कि ब्रिटेन के एक व्यापारी राल्फ फिच उस समय बिजनेस टूर पर रहा करते थे, और उन्हीं के जानकारी के आधार पर जेम्स लैंकस्टर एवं ब्रिटेन के दूसरे 200 से अधिक ताकतवर और प्रोफेशनल लोग इस दिशा में स्टार्टअप करने की सोचने लगे.
ऐसे में 31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव डाली गई, और ब्रिटेन की महारानी से ईस्ट एशिया रीजन पर बिजनेस करने का राइट इस कंपनी ने ले लिया. 1608 ई. के अगस्त महीने में कैप्टन विलियम हॉकिंस द्वारा भारत के सूरत बंदरगाह पर हेक्टर नामक जहाज लाया गया.
इसे आप ऑफिशियल डेट मान सकते हैं, जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की नज़र भारत पर पड़ी.
भारत में तब जहांगीर का शासन था, और ऐसा माना जाता है कि शुरुआत में जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद व्यापार की अनुमति नहीं दी.
किंतु ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी भी आज की तमाम विदेशी कंपनियों के लॉबिस्ट से कम नहीं थे!
लगातार तीन साल वह जहाँगीर की चापलूसी में लगे रहे, साथ ही विदेशी शराब और गिफ्ट भेंट करते रहे, और अंततः जहांगीर द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक बिजनेस एग्रीमेंट किया गया.
इस एग्रीमेंट के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारी भारत से नील, कपास, चाय, पोटेशियम नाइट्रेट इत्यादि खरीदते और उन्हें विदेशों में महंगे दाम पर बेचते. यहाँ तक कि कच्चा माल यहाँ से ले जाकर, उससे कपड़े बनाकर उसे जबरदस्ती भारत में ही बेचने का कारोबार कंपनी ने शुरू कर दिया था.
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बता दें कि इससे ईस्ट इंडिया कंपनी को भारी मुनाफा होता था.
इसके बाद आप 1670 ईस्वी में आते हैं, जब ब्रिटिश शासक चार्ल्स द्वितीय द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को विदेशों में लड़ाई लड़ने और उपनिवेश (देशों को गुलाम) बनाने की अनुमति दे दी गई.
हम सब ने शुरूआती कक्षाओं की इतिहास की किताबों में पढ़ा ही है कि किस प्रकार से धीरे-धीरे एक-एक करके ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहले कुछ लड़ाइयां हारी, किंतु बाद में धीरे-धीरे भारत उनका गुलाम बनता चला गया.
छल - कपट - प्रपंच - फूट डालो, राज करो जैसी तमाम नीतियाँ अमल में लाई गयीं!
बीच की तमाम घटनाएं हम आप जानते ही हैं कि कैसे हैं एक - एक संसाधन पर कब्जा करने के साथ-साथ, अपनी कूटनीति से ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में बेहद ताकतवर होती चली गयी, और भारतीय दिन पर दिन कमजोर होते चले गए!
कंपनी से त्रस्त होकर अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) में भारत में बड़ी बगावत हुई, और कंपनी का डाउनफॉल शुरू हुआ. 1874 ईस्वी में अंग्रेज सरकार ने कंपनी को ऑफिसियल बंद कर दिया, किंतु उसके बाद भी भारत गुलामी के अगले 100 साल काटने को विवश हो गया!
हमें पता है कि कैसे अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद भी हमें पूर्ण आजादी मिलने में 1947 तक का समय लग गया!!
East India Company, Slavery of India and Indian Digital Ecosystem (Pic: The Guardian) |
आप इन बातों को ध्यान से देखेंगे, तो समझ पाएंगे कि किस प्रकार व्यापार के माध्यम से घुसकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारे देश को गुलाम बना लिया, और अब जब कि आजादी के 75 वर्ष बीत चुके हैं, तब हमारे सामने यह प्रश्न मुंह बा कर खड़ा है!
आज अगर डिजिटल उपनिवेशवाद - डिजिटल कॉलोनियलिज्म की बात होती है, तो इस पर आपको निश्चित ही गौर करना चाहिए!
आपको यह बात बेशक इतनी गंभीर ना लगे, किंतु अब यह ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से कहीं ज्यादा गंभीर स्थिति निर्मित कर रही है.
आपके मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले टॉप टेन एप्लीकेशन की लिस्ट देख लीजिए. यहां आपको विदेशी कंपनियां ही नजर आएंगी, और यह विदेशी कंपनियां निश्चित रूप से आपके डेटा पर जबरदस्त कंट्रोल रखती हैं. चूंकि तमाम वैश्विक समझौते हैं, और उसके कारण गवर्नमेंट एक लेवल पर मजबूर हो सकती है, किंतु हकीकत तो फिर भी यही है कि भारत डिजिटल सिक्यूरिटी क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है.
आखिर इस बात में क्या शक है कि हमारा डाटा, हमारा धन सब कुछ विदेशी कंपनियों के हाथ में है, और लगातार वह इस पर कण्ट्रोल बढाते जा रहे हैं.
30 सितम्बर 2021, शाम 5.30 से 7.30 तक होने वाली परिचर्चा में भाग लें.
परिचर्चा का विषय: डिजिटल उपनिवेशवाद - Digital Colonialism
यह बात काफी समय तक अनसुलझी थी, कि आखिर भारत के टेक पर्सन्स ने जब वैश्विक स्तर पर अपनी धाक जमाई है, बावजूद इसके भारत डिजिटल जोन में आत्मनिर्भर क्यों नहीं है?
अब इसका जवाब देने की कोशिश भारत का इकोसिस्टम अवश्य करने लगा है, और इसी कड़ी में एक मजबूत नाम है सुपरप्रो का!
सुपर प्रो के वीडियो कम्युनिकेशन ऐप 'वयं' में बेहद क्लियर इंटरफेस के साथ वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजी और कल्चरल एक्सपीरियंस आपको महसूस होगा.
आप चाहे अपने घर - परिवार के सदस्यों से बात करें, आप चाहे भारत में व्यापार कर रहे हों, और इंप्लाइज से क्लाइंट से इंटरेक्शन करने की बात हो, चाहे समाज की बैठक हो, ऑफिस मीटिंग सब कुछ ही तो आप भारतीय ऐप 'वयं' पर कर सकते हैं.
ध्यान रखिए, अगर आप बारीकी से देखेंगे तो सुपर प्रो जैसी कई कंपनियां इंडियन एप्लीकेशन बनाने लगे हैं.
भारत में, भारत के लिए एक प्लेटफार्म देने लगी हैं, किंतु क्या हम अपने मस्तिष्क से 'गुलामी की डिजिटल जंजीर' हटाने को तैयार हैं?
यह एक बड़ा सवाल है, जिसे हम सभी भारतीयों को खुद से पूछना होगा. इस सवाल का जवाब जब तक हम खुद से नहीं ढूंढ लेंगे, और 'वयं' जैसे भारतीय टेक प्लेटफार्म पर खुद को नहीं जोड़ेंगे, खुद को सक्रिय नहीं करेंगे, तब तक विदेशी कंपनियों का वर्चस्व कम नहीं होगा.
और फैक्ट की बात करें तो आप यह बात तो जानते ही हैं कि आने वाले दिनों में आमने सामने की सैनिकों की लड़ाई से ज्यादा साइबर वार और डेटा वार का महत्व बढ़ेगा. इसलिए इंडियन डिजिटल इकोसिस्टम को प्रमोट करना बेहद आवश्यक है, और प्रत्येक भारतीय द्वारा भारत में, भारत के लिए निर्मित टेक प्रोडक्ट का हमें न केवल साथ देना चाहिए, बल्कि अपने सुझावों से उस को बेहतर बनाने का यत्न निरंतर जारी रखना चाहिए.
'वयं' इसी कोशिश का तो प्रतिफल है!
East India Company, Slavery of India and Indian Digital Ecosystem, Hindi Content |
ईस्ट इंडिया कंपनी ने किस प्रकार से भारत में अपनी जड़ें जमाई, इस बात की कहानी परत दर परत आपको समझना चाहिए.
इतिहास को पुनः जीवंत करना ज़रूरी है, क्योंकि कहा जाता है कि जो व्यक्ति इतिहास भूल जाता है, उसके साथ इतिहास दुहराया जाता है.
भारतीय टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम के निर्माण में प्रत्येक भारतीय नागरिक की देशभक्ति हमारी, 'वयं' की वास्तविक ऊर्जा है. आइए राष्ट्र निर्माण के कार्य में हम भी तनिक योगदान करें!
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परिचर्चा का विषय: डिजिटल उपनिवेशवाद - Digital Colonialism
https://web.vayam.app/events/hindi_utsav
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