कविता का शीर्षक है' अबकी बार तिरंगा तेरे शहरों तक लहरायंगे।
मेरा गीत प्रेम हास्य का कोई प्रबंध नहीं,
किसी राजनेता की नीति का अनुबंध नहीं।
तुम भूल जाओ पिछली बातों दिन को रात नहीं कहते,
भाई यदि खंजर खोपे हम उस को माफ नहीं करते।
आंखें तेरी छोटी छोटी सपने देखे बड़े बड़े,
खुद की बरबादी की लाइव देखेगा खड़े खड़े।
बहुत हो चुका है अब अहिंसा की बात नहीं होगी,
दुश्मन जो भाषा समझेगा अब उससे बात चीत होगी।
मेरा कहना है उस भाई से सीमा पार जो बैठें हैं,
बोना कद लेकर अपनी ज़िद पर ऐंठे है।
ऐ मत समझो भारत अपना ६२ बाला भारत है,
और भाई भाई के नारो में ना लथपथ है।
अब तो तेरे मनसूबों को साकार नहीं होने देंगे,
और तेरे सामानों का बाजार नहीं लगने देंगे।
भाई भाई का नारा हम फिर से नहीं लगायेंगे,
अबकी बार तिरंगा तेरे शहरों में लहरायेगे।
हमने तेरे व्यापारो को पल भर में हि बंद किया,
और अपने व्यवसायो शेरों की तरह बुलंद किया।
हमने तेरे सारे एप्पो भारत में बंद कर रक्खा है,
और अपने हि एप्पो को भारत बुलंद कर रक्खा है।
हमने तेरे बाजारों को भारत अब बंद किया,
अपना सब कुछ बना बना कर खुद ही उसे पलचदं किया।
हम पहले की तरह अपनी करनी पर ना पछतायेंगे,
अबकी बार तिरंगा शंहाई में लहरा देंगे।
अरूणेश कुमार कुशवाहा जी
Web Title: Poem by Arunesh kumar