poem by Durgesh Parwari

 

युद्ध लड़ रही है बेटियां” 

  

  एक जमाना था जिसमें खुशियों का खजाना था

   चाहत तो थी इक बेटी को पाने की 

लेकिन ये समाज तो बेटी को संसार में आने से पहले ही उसे कोख में मारने का दिवाना है।


मां की कोख में रहने से जन्म लेने तक

और जन्म लेने से मरने तक का सफर,

जीवन के हर क्षेत्र में युद्ध लड़ रही है बेटियां 

वैसे तो वो नहीं लड़ना चाहती कोई युद्ध 

नहीं जीतना कोई कुरुक्षेत्र का मैदान 

और ही फतह करना किसी किले को 

फिर भी लड़ रही है बेटियां।


बिना किसी रथ और गांडीव 

ही कोई है अर्जुन , कोई सारथी 

और ही है कोई कोई लालच के 

हर क्षण वे युद्धक्षेत्र में है 

कि इस समाज में सांस ले सके दो पल

जी सके कुछ पल सुकूं के

पंख लगाकर उड़ सके अंबर में 

जी सके कुछेकपल जैसे जीना चाहती है

कि जीने दें कोई उन्हें

जो लड़ रही है हर समय युद्ध 

जो लाद दिये गये है उन पर


वैसे तो इक बात कहनी है मुझे ,बेटी के इन हत्यारों से

संभल कर रहना तुम अपने घर में, अपने ही घर के पहरेदारों से।


इनके लिए हर क्षण युद्ध है,हर पल युद्ध है 

हर पहर युद्ध है, हर समय युद्ध है

दिन युद्ध है, तो रात उससे भी बड़ा युद्ध है

रहा होगा कभी ये नियम रात में युद्ध करना 

निषेध है

परंतु इनके लिए रात की वो चुप्पी ही सबसे 

बड़ा युद्ध है।

फिर भी ये बेटियां हैं कि लड़ रही है निरंतर

बिना किसी कृष्ण के उपदेश के

ही किसी गीता के ज्ञान के

और ये जो द्वंद्व है जो समाज की बेड़ियों में जकड़े हुए,कि पस्त किये जाते है उन्हे।


वो पुकारती है कभी कन्हैया को उस बंसी

बजैया को

कि काश कान्हा तुमने स्त्रियों के लिए कोई गीता का उपदेश दिया होता

काश कभी कुछ गीता का ज्ञान द्रौपदी को ही 

दिया होता

कि युद्ध लड़ो तुम द्रौपदी

पहचान करो अपने स्वजनो की

कि तुम केवल इक देह नही हो द्रौपदी


हद है ना कान्हा 

तुम्हारे इस देश में 

जहां इक ओर तो बेटी को नौ दिन पूजा जाता है 

वही दसवें दिन से ही उसे फिर समाज के रूढ़ीवादी परंपराओं में ढ़लना पड़ता है


हद है ना कान्हा

कि तुम्हारे इस मुल्क में जहां हर कदम पर बैठे हुए हैं भविष्य वक्ता और बड़े बड़े व्याख्याता

ये बताते हुए कि मनुष्य कोई देह नही आत्मा है

आज वही उस मुल्क में देह का व्यापार हो रहा है


हद है ना कन्हैया 

तुम्हारे इस गीता वाले देश में 

जहां कभी नारी का सम्मान किया गया

आज वही उस बेटी को

देह बचाने के लिए निरंतर लड़ने पड़ रहे है युद्ध


आज इस मुल्क में जाने कैसे कैसे तथाकथित 

युद्धों का सामना करना पड़ रहा है

फिरभी बेटियां हैं कि इन युद्धों को 

हंस कर पस्त किये जा रही है 

समाज के हर द्वंद्वों को ।


फिर भी जमाना बदल गया पर सोच वहीं पुरानी है 

बेटों के मोह में अजन्मी यही कहानी है

जमाना बदल गया पर नहीं बदले हम 

कब पूजी जाएगी बेटियां इसका का है हमें गम 

इसका है हमें गम 😞😞



Web Title:dugesh parwari 


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