नारी शक्ति- Poem by Geeta Gupta

 

"विषय-नारी शक्ति*


अपराजिताओं ! प्रण उठा कर्मण्यता विस्तृत करो

नवयुग स्वतः स्वीकृत करो।


मणिकर्णिका रणक्षेत्र की अन्वेषिका शुभकांक्षिणी।

आद्या ,अनन्ता,अग्रणी, अद्वैत हो उत्कर्षिणी।

तेजस्विनी वनिता सतत सामर्थ्य का उत्थान कर।

कर भाग्य परिवर्तन नवल अस्तित्व का अथ गान कर।

हे चेतनाओं! जाग अब

 अवहेलना अनृत करो।

नवयुग स्वतः स्वीकृत करो।



साहर्ष हर संघर्ष को स्वीकार नित- नित है किया।

बन कर निवाला रीति का दुर्भाग्य का विष है पिया।

कटुसत्य स्मरणीय  हो  जग कर प्रतिष्ठित छल करे।

पर कामिनी करुणामयी कर्तव्य पथ उज्ज्वल करे।


सौभाग्य की कुल देवियों,

अधिकार अंगीकृत करो।

नवयुग स्वतः स्वीकृत करो।



लुब्धक खड़े हैं मार्ग में,किंचित नहीं भयभीत हों।

कर लक्ष्य की आराधना,परिणाम आशातीत हों।

सम्भावनाएँ द्वार पर जय माल  लेकर आ खड़ीं।

कर दो विसर्जित भामिनी तुम वेदनाओं की लड़ीं।


हे दीपिकाओं !जल उठो

 जग तिमिर को अपहृत करो।

नवयुग स्वतः स्वीकृत करो।


मौलिक एवं स्वरचित रचना"


Web Title: Poem by Geeta Gupta 


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