जागृत हो भारत की दुर्गे ! मैं तुझे जगा कर जाऊँगा Poem by Pradyumn Sharma

 जागृत हो भारत की दुर्गे ! मैं तुझे जगा कर जाऊँगा ।

हर नारी मे स्वाभिमान की आग लगा कर जाऊँगा ॥
तु रणचण्डी तु कालभैरवी विंध्यवासिनी भवानी है ।
एक प्रहार से दसमुण्ड उतारे वो झॉसीवाली रानी है ॥
अरे रक्तबीज का मर्दन करने वाली तु महाकाली बन ।
स्वाभिमान पर जौहर कर ले पदमिनी विकराली बन ॥
तम देखकर जिसको भाग चले तु प्रचण्ड ज्वाला है ।
दुष्ट असुरों का सर काट कर जो पहने मुण्डमाला है ॥
तु द्रुपदसुता के खुले केशों का अटल स्वाभिमान बन ।
मातृभूमि पर पुत्र लूटा दे वह पन्ना का बलिदान बन ॥
तु बन जीजाबाई जिसने वीर-छत्रपति तैयार किया ।
बन वो नारी देशपर जिसने अपना सुहाग वार दिया ॥
तु बन दुर्गावती जिसने अकबर को भी धूल चटाई थी ।
बनहाड़ी खुद शीशकाट थालपरोस रण भिजवाई थी ।
गर नहीं जागी तो यह दरिंदे तुझपर हावी हो जाऐंगे ।
रोज सरेआम तेरी इज्जत को लुट-लुट कर खाएंगे ॥
फ़िर वो दुशासन तेरे आँचल को भरीसभा मे खींचेंगे ।
अपने हवस की आग को वह तेरे जिस्म से नोचेगे ॥
तो उठ जाग और अपनी अड्रुतशक्ति को पहचान ले ।
बलात्कारियों से तुझे ही लड़ना है बस इतना जान ले ॥

जागृत हो भारत की दुर्गे ! मैं तुझे जगा कर जाऊँगा ।
हर नारी मे स्वाभिमान की आग लगा कर जाऊँगा ॥

कवि प्रद़्युम्न शर्मा
7440876153



Web Title: pradyumn sharma


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