सशक्त रूप -
उसका !!!
परंपरा के साथ-साथ जो,
सपने भी पूरे कर ले,
पायल की झंकार के साथ,
जो थोड़ा-सा उड़ भी ले।
रोती आंखों का विश्वास बने,
वह ख्वाब कुछ अपने भी सजा ले,
सभ्यता के साथ सभी गुण,
अपना ले, वह भी आज के।
रूढ़ीवादी प्रथाओं के गठन को खोल,
वे थोड़ा-सा अब चले,
आत्मरक्षण के लिए अब,
वह भी कुछ-कुछ कहे।
उठे और साबित करें,
हम किसी से कम नहीं,
आत्मनिर्भरता अपना कर,
नारी को फिर परिभाषित करें।
खुद के बिगड़े-अस्तित्व को सुधार,
स्वयं का स्वयं से मिलान करें,
परदे की दहलीज त्याग, वे
आत्मनिर्भर खुद बने।
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Web Title: Poem by Shristi Mishra
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