डिजिटल उपनिवेशवाद - Article by Sudhir kumar on Digital colonialism

 "18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति उपनिवेशवाद की जनक कही जा सकती है, जिसने भारत सहित विश्व के बड़े भूभाग का शोषण, दोहन किया। बड़े पैमाने पर होने वाले उत्पादन के लिए कच्चा माल और तैयार माल को बेचने के लिए यूरोपियन देशों में हुई होड़ ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया। उस उपनिवेशवाद से तो हमने लंबे संघष्र के बाद छुटकारा पा लिया लेकिन आज फिर वही उपनिवेशवाद नया मुखैटा लगाये दस्तक दे रहा है। डिजिटल उपनिवेशवाद रूपी मीठा जहर हमें अपना मानसिक गुलाम बना रहा है। कल कच्चा माल कपास, नील थे तो आज सूचनाओं का ‘डाटा’ है। आज सोशल मीडिया के रूप में हम जाने- अनजाने जिन विदेशी एप्स फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, जूम, गूगल आदि के प्रशसंक यूजर्स  हैं। वे लगभग सभी विदेशी हैं। विशेष बात यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत प्रथम तीन एप्स ही का सबसे बड़ा यूजर्स है। इसलिए सबसे अधिक सावधानी की आवश्यकता भी हमें ही है। ं

हम समझ ही नहीं पा रहे हैं कि ये एप्स हमारे निजी जीवन के बारे में सूचनाएं एकत्र कर उनका दुरपयोग कर सकते हैं। हम फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर जो तस्वीरें, अथवा सूचनाएं डालते हैं, उनका सामाजिक, राजनैतिक, सामरिक महत्व भी हो सकता है। तो दूसरी ओर हमारी व्यक्तिगत सूचनाओं के ‘डाटा’ का उनके बाजार के लिए महत्व है। हम ज्यों ही गुगल सर्च इंजन पर किसी वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं, इन एप्स पर हमारे पास उस वस्तु के बारे में विज्ञापनों की बाढ़ आ जाती है। बार-बार थोपे जाने वाले ये विज्ञापन हमारी रूचि निर्माण करने का प्रयास करते हैं। हमारे बारे में ये सूचनाएं एक दूसरे को बेची जाती है। लेकिन हम बेखबर है।

अनियंत्रित डिजिटल उपनिवेशवाद ने बिना सिर पैर की सूचनाओं को प्रचारित कर समाज में बड़े पैमाने पर अस्त-व्यस्त करने की सामर्थ्य रखता है। आज जब लगभग हर व्यक्ति स्मार्ट फोन रखता है, उसे समाज विरोधी, व्यवस्था विरोधी, धर्म-संस्कृति विरोधी सूचनाएं, विडियों, चित्र आदि परोसकर गुमराह करना कठिन नहीं है। यह कोई छुपा रहस्य नहीं है कि पिछले दिनों कुछ देशों के लोकतंत्र तक को प्रभावित करने का प्रयास किया जा चुका है।

यह तो एक छोटा सा उदाहरण मात्र है। इधर इन सूचनाओं को लाभ लेकर साइबर क्राइम भी सिर उठा रहा है। ऐसे अनेक अन्य खतरे भी हैं जिन पर विशेषज्ञों की नजर है। इसीलिए जब भारत सरकार ने लंबे विचार विमर्या के बाद इस संबंध में आईटी कानून बनाया तो कुछ कम्पनियां उसपर टाल मटोल करने लगी। मामला अदालत तक पहुंचा। क्योंकि ये विदेशी एप्स बनाम डिजिटल उपनिवेशवाद अपनी मनमानी का कोई मौका नहीं चुकना चाहते। इसलिए इनसे बहुत सजग रहना होगा।

विदेशी शक्तियों द्वारा हमारे ‘डाटा’ के दुरपयोग की संभावना को तभी रोका जा सकता है जब हम विदेशी का बहिष्कार और स्वदेशी एप्स का अधिक से अधिक उपयोग करें। कुछ समय पूर्व तक स्वदेशी एप्स कम थे लेकिन इधर वयम् एप सहित अब बहुत कुछ उपलब्ध है। हमें इनका अधिक से अधिक समर्थन, सहयोग, उपयोग करना चाहिए। न केवल समाज बल्कि सरकार को भी स्वदेशी एप्स को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। भारत को अमेरिका या चीन के अनुसार नहीं,  भारत के अनुसार चलना और चलाना है तो उसे राष्ट्र विरोधी, धर्म संस्कृति विरोधी हर एप को भारत में बैन करना ही होगा। 

मैं वयम् द्वारा डिजिटल उपनिवेशवाद के विरूद्ध  जनजागरण करने की पहल का स्वागत करते हुए संकल्प लेता हूं कि जहां भी स्वदेशी एप उपलब्ध होगा, मैं विदेशी एप के उपयोग से बचने का प्रयास करूंगा। आज के कार्यक्रम में उपस्थित प्रत्येक प्रतिभागी विशेष रूप से युवाओं से भी मेरा आग्रह है कि वे भी डिजिटल उपनिवेशवाद के विरूद्ध अपना यथासंभव योगदान सुनिश्चित करें।

जय हिन्द! जय भारत!




Web Title:   , Vayam official blog content

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