कब तू कलम उठाएगा? Mausam Kumrawat

 

कब तक ऐसे चीखेगा तू, कब तक तू चिल्लाएगा,
सूरज डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?
दिन ये डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?

-१-
चाँद पे धूल जमी है, सारे तारें ओझल हो गए हैं,
पेड़ों की शाखों के पत्ते, चिड़ियों के घर खो गए हैं,
जंगल, नदियाँ, पर्वत नोंचे, नभ छूने की मंशा से,
सुध इनकी ले कौन रे बंदे, कब्रों में सब सो गए हैं।

सोए मुर्दों को कब्रों से आख़िर कब तू जगाएगा,
सूरज डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?
दिन ये डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?

-२-
कलियों को गिद्धों ने नोंचा, पुष्पों पर प्रहार किया,
दानव बनकर मानव ने भी मानवता पर वार किया,
त्रेता में सीता हरने का रावण से अपराध हुआ,
कलयुग के कई रावण ने, ये पाप सहस्त्रों बार किया।

इस युग में राघव बनकर सीता को कब तू बचाएगा,
सूरज डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?
दिन ये डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?

-३-
एक हवा फैली‌ ऐसी कि सारा जग ही ठहर गया,
लाशों का है जमघट अब, मरघट में बदल अब शहर गया,
जन बेबस और पीड़ित हैं पर कुछ है लोभी लोग यहाँ,
अश्रु से क्रांति लिख तू अब, विश्रांति का पहर गया।

गीत प्रणय और गीत विरह के जाने कब तक गाएगा,
सूरज डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?
दिन ये डूब रहा है बंदे, कब तू कलम उठाएगा?

- मौसम कुमरावत


Web Title: Mausam Kumrawat


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