प्रतिभा poem by Avinash Kumar Rao

 

प्रतिभा


छेदती मिट्टी
तोड़ती फोड़ते
अपने आवरण हटाती
फेंकती झटकार
भाग्य पर अपने रोती नहीं
दृढ इच्छा शक्ति से देखती शिखर की ओर
चलती है प्रतिभा ||
न रोक पाते
प्रस्तर, पहाड़
कंकड़, काँटे
न कोई बाधा,
अपनी पृष्ठ भूमि पर रोष करती नहीं
कदम बढ़ाती जीवनोद्देश्श्य की ओर
चलती है प्रतिभा ||
वह मोहताज नहीं
खातिर पहचान की
हेतु प्रसिद्धि की
लालशा नहीं
लक्ष्मी, कुबेर का भंडारण करे,
दोषों को पार करती, बढती लक्ष्याशा की ओर
चलती है प्रतिभा ||
नहीं किसी मंच की चाह
स्वकर्म ही जिसका
आत्मबल है होता,
उसे किसी लाठी(चीन) की जरूरत नहीं
लिए आशा की किरण निश्चित दिशा की ओर
चलती है प्रतिभा ||
पुरस्कार, सम्मान
उत्तरीय न उसके
शब्दकोष में, न शौक में
आजीवन प्रतिदिन,
क्षण हर कदम योग, उद्योग, मोक्ष की ओर
चलती है प्रतिभा |||
जंजीर गुलामी की
फेंक देती है,
जिसके रग-रग में देशभक्ति का
खून बहता है,
अपनी राह खुद बनाती
स्वदेशी धारा से, देश को विकास की ओर
ले जाती है प्रतिभा ||


Web Title: Avinash Kumar Rao


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