नारी जरा संभलो- Poem by Kavita Sanghvi (Porwal)

 

"शीर्षक  :-   नारी जरा संभलो


उठ नारी,       जरा तू संभल जा,

पहचान अपनी शक्ति,      एक नई पहल बना, 

अधिकार है तुझे सारे,       पुरूषों वाले,

अब तो अपना अधिकार समझ 

जीती रहती है,  तू केवल दूसरों के खातिर,

अरे नारी  उठ,  तू कभी तो अपने लिए मुस्कुरा दिया कर,

अच्छें नहीं लगते,  तेरी आंखों में ये आंसु,

अच्छें नहीं लगते,  तेरी आंखों में ये आंसु,

सुन कभी तो अपने लिए जी लिया कर,

सुन कभी तो अपने लिए जी लिया कर,

मानती हूं,  मानती हूं,

बंदिशे बहुत है तुझ पर,

किसी कि बेटी है, किसी कि माँ है, 

किसी कि पत्नी है, किसी कि बहु है,

लेकिन कभी अपने लिए, समय तो निकाल लिया कर,

चार दिवारों में कैद रहना,  तुझे बड़ा पसंद है,

आजादी आजादी बड़ा तहलका मचाती है,

एक घूंघट के लिए, समाज से तू लड़ जाती है,

लेकिन जब तेरे साथ दुष्कर्म जैसी घटना होती है,

तू बड़ी सहमी सहमी सी क्यूं रह जाती है,

सवाल उठता है जब तेरे चरित्र पर,

सब कुछ तू सह लेती है,  

उठ नारी सहते सहते तुझे बरस बीत गए, 

अब अपने हक के लिए लड़,

जीती जागती एक मिसाल बन,


"


Web Title: Poem by Kavita Sanghvi (Porwal)


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post