वे आए हैं पुनः poem by Priya Sweet

वे आए हैं पुनः 

तुम्हारे अस्तित्व को छलनी करने 

तुम्हारे स्वत्व को निचोड़ने 

यह पहली बार नहीं है 

ये पहले भी आ चुके हैं 

और आते ही रहेंगे,

तुम लड़ना अपनी 

पूरी ताक़त के साथ 

अपने वज़ूद की ख़ातिर 

अपनी बेटी की ख़ातिर 

तब भी जब 

तुम्हारे सारे रहनुमा 

तुम्हें छोड़ भाग खड़े हों 

तुम लड़ना कि जैसे 

लड़ना ही नियति है। 

तुम विश्वास करना कि 

तुम अकेली नहीं हो 

क़ायनात की सारी शक्तियां 

तुम्हारे साथ हैं। 

तुम्हें लड़ना ही होगा 

क्योंकि दुनिया की आबरू 

तुम्हारे हाथ है 

तुम जानती हो 

जीवन देना 

चाहे दुनिया का 

कोई भी हो कोना 

तुम लड़ना कि जैसे 

लड़ना भी सतत् प्रक्रिया है। 



Web Title: priya sweet


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post