हिन्दी से हिन्दूस्तान है- Abhishek Dwivedi

 शीर्षक                १

                हिन्दी से हिन्दूस्तान है 


विवेकानंद जो हिन्दी ना कहते वह विकट होते नही

बात होती पश्चिम में भी पर यथा भाव प्रगट होते नही 

सब शब्द बनें है एक सेही मान कोई स्पष्ट होते नही 

हम बैठ कर बातें करते रोज लेकिन दिल निकट होते नही 


माँ भारती से   नाम हमारा माँ   भारती से  पहचान है

नजरे उठाते जो निज धरा पर वो शक्ति से अनजान है

पश्चिमी परिधान में है चूर जो उनको जरा ना  ज्ञान है

हिन्द से तो  हम बने हैं हिन्दी से अपना हिन्दूस्तान है 


आज जो भी  सभ्य बने है पश्चिम के ज्ञान में 

सुर से जो सुर  मिलाते विदेशियों के तान में 

भूल चुके जो कर्ज माँ का अपने अभिमान में

एसे जयचंदो का अब स्थान नही है अपने हिन्दूस्तान में 


शोभित है भाषा जैसे जहाँ सुहागन की माथ बिन्दी है

हम रहते जहाँ  पर माँ रक्षा करती भारती रणचन्डी है

जहाँ से हम उत्थान करते  माँ राह बनाती पगडंन्डी है 

तुतलाकर हमनें जब माँ कहा था वही अपनी हिन्दी है

                                          अभिषेक द्विवेदी 

                                          

                           २

में बाते करता हूँ केवल, काश्मीर की घाटी की।

में बाते करता हूँ केवल, अंगार भरी माटी की।

में बाते करता हूँ केवल, भूखो की दो रोटी की।

में बाते करता हूँ केवल, अबलाओं की बोटी की।

में बाते करता हूँ केवल, नेतृत्व के बयान की।

में बाते करता हूँ केवल, भारत के संविधान की।

सारी सत्ता सिमट चुकी है, वोट बैंक के कर्मो में।

फिर ना कोई देश बांट दे, जात पात और धर्मो में।


मंदिर भी ना प्यारा इनको, मस्जिद भी ना प्यारी है।

जिसका जनमत होता ज्यादा,उनकी मारा मारी है।

जुबा नही थकती है इनकी, कोरे वादे कर कर के।

फटी नही है जेबे इनकी, फोकट का पैसा भर के।

सरकार बनाकर भूल गए, मयखाने को याद रखा।

खा पीकर पैसा जनमत का, भारत को बर्बाद रखा।

राजनीत का हस्तक्षेप हो, घोटालो के मर्मों में।

फिर ना कोई देश बाँट दे, जात पात ओर धर्मो में।


चप्पा चप्पा सिसक रहा है, गोली  और विस्फोट से।

पूरा देश दहल रहा है, अलगाव वाद की खोट से।

तड़प रही है सैन्य शक्तियां, सरकारी कुविचारों से।

शाशन हाथ मिलाती देखो, कुत्ते और सियारो से।

सूरज मित्रता कर बैठे क्यों, मावस के अंधियारे से।

विघटन की बदबू आती है, शाशन के गलियारों से।

विरोध  नही लिखा है मेने, चीत्कार लिखी है मर्मों में।

फिर ना कोई देश बाँट दे, जात पात ओर धर्मो में।

                                             अभिषेक द्विवेदी




Web Title: Poem by Abhishek Dwivedi


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