कविता -- नारी एक रूप अनेक
खुदा से ना कभी जिसे मांगा गया ,
जिसके जन्म पर ना कभी मिठाई बांटी गई,
कहते हैं हम सब उसे नारी ,
जिसकी हर खुशी फर्ज के बीच से बंटी गई..
पिता के घर थी चुप सी रहती है ,
खुद को पराया धन सुनकर बेचारी आगे से क्या कहती ,
मन में इच्छा होती थी सखियों संग खेलने और पढ़ने की ,
परंतु मां जिम्मेदारी डाल रखी थी तब ,
गोल-गोल रोटियां बेलने की..
घर के कामों में हाथ खुल जाए ,
माता-पिता तो यही चाहते थे,
ससुराल वाले कोई बात ना सुना पाए ,
बस इसी बात से घबराते थे..
दबे से डर के साथ फूलों की डोली में बैठ ,
वह अपने घर आती है ,
जहां अपनेपन की कमी उसे बार-बार सताती है,
कोई बात ना सुनाई जाए उसके माता-पिता को ,
इसलिए यहां भी चुप ही रह जाती है,
जाने किस मिट्टी की बनी है ,
आधे से ज्यादा जीवन चुप्पी में बिताती है..
जब खुद मां बन जाती है ,
तो सब कुछ भूल जाती है,
अपने मुंह के निवाले से बच्चों की भूख मिटाती है,
पूरा जीवन फर्ज से घिरी रहती है ,
नारी तो एक है परंतु अनेकों रूपों में बहती है..
नारी की स्थिति सुधारने के लिए,
सरकार तो बहुत कुछ कहती है ,
परंतु कोई तो उन्हें जाकर बताएं ,
कि नारी आज भी बहुत कुछ सहन करती है ,
देश को आजादी मिल गई ,
परंतु विचार आज भी गुलाम है,
लोकतंत्र के इस राज्य में ,
नारी पर हाथ उठाना बात यह आम है..
खुद को पुरुष कहने वालों,
तुम्हारी हरकतों पर लज्जा आती है ,
जिसे तुम पांव की जूती समझते हो ,
वही तुम्हें सिर का ताज बनाती है,
जीवन की मुश्किलों में तुम डगमगा ना जाओ ,
सुबह शाम मंदिरों में दिए जलाती है ,
तुम्हारे स्नेह भरे साथ के लिए वह आजीवन तरस जाती है..
अभी भी कहते हैं तुम से ,
जाग जाओ और दूसरों को जगाओ,
यह तुम्हारी अपनी है फिर क्यों पराई पराई कहलाती है, तुम्हारे आंगन की बगिया को आज भी सजाए रखती है,
नारी तो त्याग की मूर्ति है,
फिर क्यों तुम्हारी आंखों में खटकती है..
इसको कमजोर समझने वालों,
यह तुम्हारी बहुत बड़ी गलती है ,
यह ठान ले तो कुछ भी कर दे ,
किसी के टाले नहीं टलती है ,
पल में तुम से आगे निकल जाए इतनी हिम्मत रखती है ,
परंतु यह विदेशी नहीं भारतीय है,
इसीलिए तुम्हारे पीछे पीछे चलती है,
इसीलिए तुम्हारे पीछे पीछे चलती है..
Web Title: Poem by Meenakshi Sharma
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