न समझो मुझको अब अबला मैं तलवारों की धारी हूँ- Akanksha Bundela

कविता का शीर्षक - मैं बेटी हूँ, मैं नारी हूँ, मैं हर घर की फुलवारी हूँ


मैं बेटी हूँ, मैं नारी हूँ, मैं हर घर की फुलवारी हूँ

न समझो मुझको अब अबला मैं तलवारों की धारी हूँ


मै दुर्गा हूँ मैं लक्ष्मी हूँ मैं देवी हूँ मैं काली हूँ

मैं हर घर की तुलसी हूँ मैं होली और दिवाली हूँ

मै बलिदान पन्ना का शिवाजी की कटारी हूँ

न समझो....... 


मैं घावों की मर्हम  हूँ मैं अनुसूईया मैं सीता हूँ

हूँ इतिहास भारत का मैं रामायण मैं गीता हूँ

शास्त्रार्थ में भी आगे हूँ मैं सारे जग से न्यारी हूँ

न समझो....... 


हर बेटी को पढाये हम इन्हें मंजिल को छूना है

न रोको कदमों को इनके यही भारत का नमूना है

मै हूँ फूलों की हर बगिया मैं ही सुन्दर सी क्यारी हूँ

न समझो..... 


Web Title: Poem by Akanksha Bundela


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