"बन शीशे सा चटक गई मैं...
अग्नि जैसी दहक गई मैं...
अब निकली हूं लोहा बनकर,,,
तो पार्थ जैसा अब लक्ष्य रखूंगी....
तन मन की वो चोट मुझे अब,,,
न दर्द का प्याला दे पायेंगी......
रोक सको तो रोक लेना...
अब मंजिल से ना नज़र हटेगी... [#कैद इक आवाज]
राह रुकावट से मिलकर भी... नीशू मौर्या (Arjnii)
कदमें ना अब एक रुकेंगी।
सैंधव सी अब चाल रहेगी....
देवनदी की धार रहेगी......
अंशु सी फैलाव में अब तो चंद्र व्योम भी चमक उठेंगे....
अब बन हिंदी उन लोगों से ,,,
बस एक रिश्तें का नाम रखूंगी...
जब वेद समझ तुम पढ़ो मुझे
तब #हिंदी से पहचान बनेगी।
#kaid ek awaz.............
Nishu Maurya ...(Arjnii)
.......#हिंदी हैं हम...."
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