जीते हैं जिस आजादी में हम
उसके देखे वीरों ने सपने थे।
जिन पन्नों में रहे गुलाम सभी
वो काले पन्ने ढकने थे।
कईयों ने दिया बलिदान अपना
और कइयो ने खोए अपने थे ।
जिंदा रखा जिन सपनों ने।
वो सपने भी क्या सपने थे।
हम तो जीते हैं आजादी में
मगर जीवन तो उनके खपने थे।
जिन्होंने दिया बलिदान अपना
और जिन्होंने खोए अपने थे।
गाते हैं हम गीत प्रेम के
जबकि गीत हमें वो रटने थे।
हम जपते हैं नाम आशिको के
जबकि नाम तो उनके जपने थे।
जिन्होंने दिया बलिदान अपना
और जिन्होंने खोए अपने थे।
जो लड़े मरे आजादी के लिए
जिन्होंने कभी ना टेके घुटने थे।
महासमर में जो हुए शहीद
वो सभी हमारे अपने थे।
जिन्होंने दिया बलिदान अपना
और जिन्होंने खोए अपने थे।
Web Title: Poem by Nishant Sharma
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