नारी शक्ति POEM BY- Ambika Garg

 

नारी शक्ति

नारी तू विवेकनी,जो धीर सदा धरती है।
जिसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।

1.जब जन्म लिया नारी ने तब से ही,
सहनशीलता का गुण पाया।
मर्यादा में रहना है तुझे,
यही पाठ हमेशा सिखलाया।
मर्यादा की वेदि पर,उसके,
ख्वाब सजाए जाते हैं।
अगर कुछ ज्यादा बोले तो,
उसके,उपहास बनाये जाते हैं।
मर्यादा के नाम पर जो,
संस्कारों का दम भरते हैं।
छीन लेते हैं बचपन उसका,
हाय, कैसा करम करते हैं।
ये वही नारी है,जो दो कुलों का,
भार सदा भरती है।
जिसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।

2.जना नारी ने अपने गर्भ से,
कितने ही भगवानों को।
राम-कृष्ण,महावीर-गौतम,
और अर्जुन वीर महानों को।
प्रसव-पीड़ा का दर्द वो ,
हंस हंसकर सहती है।
कहते हैं इस पीड़ा में,
पीर बहुत होती है।
फिर भी क्यूँ सोहर में उसको,
अपवित्र माना जाता है,
उसके इस रक्त निष्कर्षण को,
घृणा से जाना जाता है।
यही रक्त तो वो अपने नवशिशु के,
रग-रग में भरती है।
जिसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।

3.जब पल्लवित करे वो नव- जीवन तब,
ममतामयी कहलाती है।
न दे पाए जन्म जीव को तब,
क्यूँ वही कलंक बन जाती है।
जैसे सुखी हरियाली रहित धरती,
बंजर ही कहलाती है।
हे पुरुष!तुम अपने वंश बेल की खातिर,
दूजा व्याह रचाते हो।
साथ छोड़ने में संगिनी का ,
तनिक भी न सकुचाते हो।
न जाने अम्लान ये शक्ति,
इतनी ह्रदय कहाँ से लाती है।
एक साजन को खोने का डर,
दूजा बंजरता का कलंक लिए,
इतनी पीड़ा में भी देखो वो,
उफ़ तक न करती है।
क्योंकि उसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।

4.ईश्वर की ये सुंदर रचना,
अम्लान,सुमज्जवल,कोमल वचना।
जब तुम इस प्रीत की देवी पर,अपने,
पुरुषार्थ का दम भरते हो।
अपने पल भर सुख की खातिर,
काया उसकी छिन्न-भिन्न करते हो।
नन्ही-नन्ही कलियां जो, अब तक
जो उपवन में खिल न पायीं थीं।
क्यूँ मसल दिया तुमने उनको जो,
पल भर भी न मुस्काई थीं।
तुम्हारे इसी कृत्य के कारण वो,
स्वयं अपनों से डरती है।
जिसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।

5.क्यों भूल गए तुम,ये वही नारी है,
जो तुम्हारे पौरुष को गढ़ती है।
माँ,प्रेमिका,पत्नी बनकर,
तुम्हारे साथ -साथ बढ़ती है।
गंगा सी शीतल बनकर जो,
पाप तुम्हारे हरती है।
चाहे कितना भी गहन दुःख हो,
सौभाग्य तुम्हारा भरती है।
तुम्हारी ही खुशियों की खातिर,
जो अपनी खुशियों का परित्याग करे।
क्या तुम्हें पता है,वो भी अंदर,
पल ही पल मरती है।
क्योंकि उसके आँचल ममता रुपी,क्षीर सुधा झरती है।


Web Title: Ambika garg


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