"हिन्दी है मृदुभाषी है
. गंगा नहाए कांशी है
दादी नानी चाची ताई
इन शब्दों की अलग कहानी है
हर स्वर व्यंजन में प्यार भरा
रस आम सी मिठास समाई है
ना हो भेदभाव भाषा को लेकर
हर जन को यही समझानी है
हम प्रेम करे अपनी वाणी से
कीमत इसकी पहचाननी है
गर्व हमे अपनी भाषा पर
संसार में सबसे न्यारी है
हर शब्द में इसके प्यार भरा
ये प्यार बांटने वाली है
हिन्दू है हम हिन्दू है
हिन्दी से पहचान हमारी है
हिन्दी बड़ी मृदुभाषी है
गंगा नहाए कांशी है"
Web Title: Poem by Bhumika kaushik
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