तुम नवल उत्थान लाओ poem by Eti Shivhare



"नारी सशक्तिकरण


हे! मनस्वी मानवी,

   अवबोध का आह्वान लाओ।

        तुम नवल उत्थान लाओ!


रज  सने  पग  धर  गए  वो  थान देवालय बनाया।

राजमहलों   में   न   सुख  वनवास में एश्वर्य पाया।

तुम 'उपेक्षा' को 'अपेक्षा'  में  बदलना  जानती  हो।

हाय! फिर भी बन 'दया का पात्र' जीना चाहती हो।


पूज्य, विदुषी-वामिनी,

  अभिनत्व का अवसान लाओ।

       तुम नवल उत्थान लाओ!


सोचती  हो?  मूकदर्शक,  ये  तुम्हें  सहयोग   देंगे।

रक्त की  अंतिम  तुम्हारी  बूंद  भी  वे  सोख  लेंगे।

बिन  कहे कब स्वत्व पाया? माँगना पड़ता यहाँ है।

रो  न  दे  शिशु पूर्व इसके क्षीर भी मिलता कहाँ है!


अब उठो! तेजस्विनी,

   स्वयमेव का सम्मान लाओ।

       तुम नवल उत्थान लाओ!


भावनी, भव्या, भवानी के हृदय में भय बसेंगे?

चक्षुओं में दीप जिनके क्या उन्हें ये तम डसेंगे?

काल  के  कटु पृष्ठ  पर सम्भावनाएं  जोड़नी हैं।

तुम  वही  जिसको  समूची  वर्जनाएं तोड़नी हैं।


""तमसो मा ज्योतिर्गमय"" का,

    हर्षमय जय-गान लाओ।

        तुम नवल उत्थान लाओ!


-इति शिवहरे"

Web Title: इति शिवहरे 

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