#बासुरी_की_पीड़ा_भाग_1
भूख और पीड़ा के,राग गाती बासुरी।
तुम सुने गीत बस, पीर गाती बासुरी।
एक दर्द खमोशी का, खालीपन में भरा,
सांस से छूई जो सांस,गीत नया जग पड़ा
हर नई वेदना का, सार गाती बासुरी,
तुम सुने जहाँ,उस पार गाती बासुरी।
चूम कर अधर भी, पीर न समझ सका।
अंगुलियों की छुवन,गीत न समझ सका।
भर के आह कण्ठ में प्रीत गाती बासुरी।
मन की हार और नई जीत गाती बासुरी।
एक चोट धार की, एक पीर सार सी।
जल रही मन तपन, दीप के ज्वार सी।
राग आग में जलें, जल रही है बासुरी।
गा के मधु गीत खुद को, छल रही है बासुरी।
कुमार आनन्द
Web Title: kumar aanand
आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ...