आज का इंसान क्यों जानें खो गया! poem by Pawan Kumar Verma

 

शांति गीत
-------------- आज का इंसान क्यों जानें खो गया!
मानव ही मानव का भक्षक हो गया!

कैसी नींद है इसको आई!
कोई सदा भी न दी है सुनाई!
अपने-अपनो से है रूठा!
अपने-अपनो का घर फूँका!
चारों तरफ है आग लगा दी!
हाय मोहब्बत दिल से गंवा दी!
मज़हब कैसे चीख रहें हैं!
मानव-दानव दीख रहे हैं!
रोती है अब भारत माता!
रोने लगा है भाग्यविधाता!
खूँन की नदियाँ बहनें लगी हैं!
हमसे कुछ-कुछ कहने लगी हैं!
नदियाँ कहती मानव बदला!
भाई से लेने को बदला!! 1!!

वही धूप वो छाँव वही है!
वही देश वो गाँव वही है!
झंहाँ खेलते चारों भाई!
हँसती थी तब भारत माई!
एक साथ वो मिलकर रहना!
भारत माँ की जय जय कहना!
आज ये कैसा दौर है आया!
देख सोंच के दिल घबराया!
बम,बंदूक,कमान ले आया!
ये सारे समान ले आया!
भाई को भाई ने मारा!
भाई से भाई है हारा!
कैसी ये मनहूस घड़ी है!
भाइयों में जंग छिड़ी है!
खूँन-खूँन बस खूँन बहा है!
वार भाई का भाई ने सहा है!! 2!!

मेरी एक गुज़ारिश सबसे!
भारत माता कहती कबसे!
तुम सब तो मेरे अपने हो!
मेरी आँखों के सपने हो!
मज़हब हमें नहीं सिखालाते,
आपस में लड़कर मर जाना!
हम सब तो भाई-भाई हैं,
प्यार मोहब्बत से पेश आना!
बाद में हिंदू मुस्लिम हैं हम,
सबसे पहले हम हैं भारती!
भारत माँ की करो वंदना,
भारत माँ की करो आरती!! 3!!

----- पवन कुमार वर्मा


Web Title: Pawan kumar verma


आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ... 

vayam.app




Post a Comment

Previous Post Next Post