"नारी ही संपूर्णता हैं,उसे ही अपूर्णता माना।
नारी ही सर्वज्ञ हैं,वही संसार से अल्पज्ञ हैं।।
नारी ही विश्वसनीय हैं,उसे ही अविश्वसनीय माना।
नारी ही सृजनता हैं,वही संसार की विषाक्त हैं।।
नारी ही कर्मता हैं,उसे ही अकर्मता माना।
नारी ही जीवंत हैं,वही संसार की निर्वंत हैं।।
नारी ही आत्मीयता हैं,उसे ही अनात्मीयता माना।
नारी ही विश्व का राग हैं,वही संसार की विरक्त हैं।।
नारी ही धनजल हैं,उसे ही ऋणजल माना।।
नारी ही सांस्कृतिक अस्मिता हैं,वही संसार की छदम आधुनिकता है।।
नारी ही स्वतंत्रता हैं,उसे ही परतंत्रता माना।
_मानसी राजपूत"
Web Title: Poem by Mansi Rajput
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