"राहें
अब वो मेरी राहें नहीं है,
सब की है पर मेरी नहीं है,
बंद गलियाँ, तंग सोच,
बंधी पतंग की है डोर,
एक कदम चलते ही,
अबला की वो छोर,
समाज की किनोर
अब वो मेरी राहें नहीं है..
अब जो मेरी राहें है,
सब की नहीं पर मेरी है,
एक खूबसूरत जहान,
जहाँ कम है पेरों के निशान,
पंछियों के आसियान
और खुला आसमान,
सपनो के अरमान,
एक नयी पहचान.."
Web Title: Poem by Sahjal Sharma
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