लाख़ लगाई बंदिशे मुझ पर,
छोड़े पहरेदार हज़ार,कभी किया कटघरे में खड़ा,
तो कभी किया मुझे कैद,
शदियां बीतती गई खुद को साबित करती रही,
कभी सतयुग की सीता बनकर दी अग्नि परीक्षा,
तो कभी युद्ध के मैदान में झांसी की रानी बनकर ले लिया दुश्मनों से लोहा,
ईरादे थे मज़बूत,
विश्वास था पक्का,
आ जाएं मुश्किले हज़ार,
हर मुश्किल से लड़ जायेंगे,
तो क्या हुआ जो परीक्षा बार बार देनी पड़ी,
हर परीक्षा के बाद खुद को और भी मज़बूत पाया हमनें,
थी इतनी शक्ति हममें की सावित्री बनकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद कर दी,
तो कभी कल्पना चावला बनकर अंतरिक्ष में उड़ान भी भर दी,
ना जाने कितने रूपों से खुद को साबित किया,
पर फिर भी हर बार सब शुरू नए सिरे से ही किया,
जब सोचती हूं.....
उस खुदा की बनाई गई इतनी मासूम इनायत हूं मैं,
तो होता है मुझे गर्व खुद पर की मैं एक नारी हूं,
जिसे ये समाज कहता अबला है,
जिसकी जंग आज भी जारी है,
बंधे जिसके पैर आज भी जंजीरों में,
पर हर जंजीर मैं तोड़ दूंगी,
उस आसमां से ऊंची मेरी उड़ान होगी,
है खुद पर भरोसा इतना की हर कामयाबी मेरी पहचान होगी।
- मोनिका गौतम
Web Title: Monika Gautam
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