तू भरती रहे आशाओं की उड़ान
हर आंगन में फूल बनकर खिली,
सजी , संवरी और निखरी।
साहस तेरा कभी ना डिगा,
मान तेरा कभी ना मिटा।
तू भरती रही आशाओं की उड़ान।।
तू पहाड़ों को चीरती,
विश्व को सिंचती।
समुद्र की बूंद बन,
सीप का मोती बनी,
धरा के मुकुट जढ़ी।
तू भरती रही आशाओं की उड़ान।।
स्नेह और ममता संस्कार तेरे,
क्षमा और संवेदनशीलता हथियार तेरे।
धरा-सी विशाल बन, सबको समेटती,
मान और अपमान के बीच झूलती,
तू भरती रही आशाओं की उड़ान।।
किस में दम तुझे रोक सका,
तेरे अदम्य साहस के आगे कौन टीका।
मानव क्या देवता भी जिसके आगे झुके,
समाज की क्रूरता और रूढ़ियों को ठोकर मारती,
संस्कारों के बाणों की प्रत्यंचा चढ़,
तू भरती रही आशाओं की उड़ान।।
कौन रोक पाएगा इन हौसलों को,
इन तूफानों और आंधियों में दम नहीं,
तेरी उड़ान को रोकने का।
तू हिमालय सी अडिग बन,
तू दरख़्त सी मजबूत बन,
तू शक्ति का प्रतीक बन,
तू भरती रहे आशाओं की उड़ान………।
कवयित्री- श्रीमती सुरेखा संजय शर्मा
Web Title: Poem by Mrs. Surekha Sharma
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