अगर मैं चिराग होता तो मेरा मान भी वढा़या जाता,,
उसके मेंहदी लगे हाथों से मैं भी कभी बुझाया जाता।।
डस्टविन में पड़ी चिठ्ठी की भी आरज़ू यही थी,,
काश वो चूमती मुझको और मैं तकिये में झिपाया जाता।।
यूं तो हर कोई आकर गले से लगा लेता है शुभ मुझको,,
कभी तुम दौड़कर आतीं और मैं गले से लगाया जाता।।
Web Title: poem by Mukesh Kumar Lodhi Shubh
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