"वह चिल्लाता हुआ कहता है
मेरी माँ दुनिया की
सबसे असाधरण स्त्रियों में से है,
क्योंकि मेरी माँ ने मुझे और परिवार को
अपना जीवन समर्पित कर दिया।
मेरी माँ ने कभी नहीं चुना कविता लिखना
या अंतरिक्ष में जाना,
मेरी माँ ने नहीं चुनी
कोई भी नौकरी।
उन्होंने परिवार चुना,
इसलिए माँ
दुनिया में सबसे असाधरण हैं।
दरअसल, माँ ने
बर्तनों पर गिरते पानी में ही
शायद महसूस की
लहर नदी की।
माँ ने कपड़े सुखाते वक़्त
महसूस की हो
बहती हवा माथे पर।
घर की
छोटी-मोटी टूट-फूट सँवारने में
शायद महसूस किया हो
उसने मैकेनिक।
घर की रोज
गोल-गोल घूमती दुनिया में ही
तलाश लिया हो माँ ने
अपना अंतरिक्ष और भूगोल।
दिन भर थिरकती माँ ने शायद
महसूस की हो अपने कदमों में
एक सुंदर नर्तकी,
बर्तनों की खटर-पटर के बीच
रोज गुनगुनाते गीत की दबी आवाज़ में
माँ ने महसूस की हो
एक गायिका।
किसी रात उदास मन से
निढाल हो बिस्तर पर
उकेरी हो मन में
कविता की एक पंक्ति,
जो मूँदी गई आँखों में दबकर
अधूरी रह गयी हो।
हो सकता है
माँ ने महसूस किया हो सब
या वह न पा सकी हो
कुछ भी महसूस करने का अवसर।
माँ भी चुनती कविता को,
अंतरिक्ष को, नौकरी को
अपने सपनों को
पर माँ ने कुछ भी नहीं चुना
क्योंकि,
माँ को चुनने का अधिकार नहीं था;
माँ को होता अधिकार
तो माँ
साधरण होना चुनती।
- निशा गहलौत"
Web Title: Poem by Nisha gahlaut
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