"कैसे लिख दूँ फरियाद सिया को,
स्त्री के उत्पीड़न की।
वो आँसू वो तिरस्कार,
वो संघर्ष रूदन की।
नयनों से बहते नीर की,
शब्दों के चुभते तीर की,
असहनीय उस पीर की।
जब उन पर भी चली,
वही शब्दों की जंजीर थी।
वही प्रश्न थे उठे,
वक्त कुछ भी ना बदला,
वही उनकी पीर थी।
कैसे लिख दूँ फरियाद सिया को,
स्त्री के उत्पीड़न की।
उसी दर्द से वह भी गुजरी,
अग्निपरीक्षा फिर समाज,
ने निकाली तरकीब थी।
हर बार वही परीक्षा,
हर सिया की तकदीर दी।
पूजन करते है जिस नारी का,
वही नारी तब अपवित्र थी।
युगों-युगों से चलती आयी,
यही समाज की रीत थी,
हर सिया की वही तकदीर थी।
कैसे लिख दूँ फरियाद सिया को,
स्त्री के उत्पीड़न की।
मानसी मिश्रा
( प्रतीक्षा 🌙♥️ )"
Web Title: Poem by Mansi Mishra
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