" वह बहू लाने की तैयारी में थे,
पर मैं तो बेटी बनना चाहती थी..
बुरा है सास ससुर का रिश्ता,
पर मैं मां-बाप बनाना चाहती हूं....
लड़ना झगड़ना और शरारत साथ में,
देवर को छोटा भाई बनाना चाहती हूं....
वह बहू लाना चाहते हैं,
पर मैं तो बेटी बनना चाहती हूं...
खाने में नमक ज्यादा हो जाए तो,
सास के डांट खाना चाहती हूं...
दरवाजे पर सुंदर रंगोली बनाकर,
ससुर से तारीफ सुनना चाहती हूं...
वह बहू लाना चाहते हैं,
पर मैं तो बेटी बनना चाहती हूं...
तीज त्यौहार पर आपके घर की,
परंपरा सीखना चाहती हूं,
सच कहूं तो सांस के रूप में,
मां को पाना चाहती हूं...
वह बहू लाना चाहते हैं,
पर मैं तो बेटी बनना चाहती हूं...
बात करूं पति की तो,
परछाई आपकी बनना चाहती हूं...
आपके एक कप चाय से,
दो घूंट मैं भी पीना चाहती हूं...
वह बहू लाना चाहते हैं,
पर मैं तो बेटी बनना चाहती हूं"
Web Title: Poem by nitesh yadav
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