हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ poem by Ravi Desh Saroj

 

हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ
कभी तुम भी हल्वा पूड़ी खा जाना ।
मैं गया हूँ मज़ारो पे यूँ ही
कभी मंदिर पे तुम भी आ जाना
हमने मांगी दुआये अल्लाह से
कभी प्रार्थना भगवान की कर जाना
हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ
कभी तुम भी हल्वा पूड़ी खा जाना ।
ईद बकरीद भी है मनायी
गले मिल-मिल के दी है बधाई
दीप दिवाली का तुम भी जलाना
होली मिलने भी इस बार आना
हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ
कभी तुम भी हल्वा पूड़ी खा जाना ।
हमने समझी हैं आयते कुरान की
कभी दोहे रामायण के सुन लेना
हमने ली है इल्म उर्दू की
कभी संस्कृत को तुम भी पढ़ लेना
हमने की है दुआ हर अज़ा पे
खुश रहे हम सभी हिन्दोस्तां में
गैर समझे न किसी मज़हब को
ये मुराद है हर इक इन्सा से
हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ
कभी तुम भी हल्वा पूड़ी खा जाना ।
हमने की है शिरकत कई निकाह में
तुम भी आना किसी जयमाल में
हाथ एकता का आगे बढ़ाना
मिसाल बनना नये हिन्दोस्तां की
हमने खायीं बहुत हैं सेवाईयाँ
कभी तुम भी हल्वा पूड़ी खा जाना ।।

_रविदेश सरोज 🖋


Web Title: Ravidesh saroj


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