"फांसी फंदे पर झूल जिन्होंने आजादी दिलवाई है,
अगर हम पूछे खुद से तो क्या हमने स्वतंत्रता पाई है?
पाकर अंग्रेजों से आज़ादी अंग्रेज़ी के गुलाम हो गए,
स्त्रियों को पूजने वाले आज उनकी अस्मिता के हैवान हो गए।
बाल श्रम से हम हारे आतंकवाद का बोलबाला है,
क्या कुपोषण की छत्रछाया में भारत उन्नति करने वाला है?
ध्वनि,मृदा और जल प्रदूषण का कहर छाया है इतना घनघोर,
कहकर देश की दुर्गति मन हुआ अति भाव विभोर।
प्लास्टिक के उपयोग का जिम्मा जैसे हमने ही संभाला है,
हिंसा, देश विरोधी नारों ने देश को पंगु बना डाला है।
दहेज ,निरक्षरता और संप्रदायवाद के बादल छाए हैं,
कैसी ये बाधाएं कैसी ये कुप्रथाएं हैं?
विदेशी कंपनियों का हंगामा पाश्चात्य सभ्यता की होली है,
कहीं पुलिस की दादागीरी तो कहीं गुंडों की टोली है।
भ्रष्टाचार ,महंगाई सर्वत्र बेरोजगारी और स्वच्छता की लड़ाई है,
एक बार फिर क्या हमने वास्तव में स्वतंत्रता पाई है?"
Web Title: Poem by Riddhima
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