"*नारी शक्ती*
मै जिवनदायिनी
दुर्गा का रूप हू ..
लक्ष्मी हू घर घर की
नारी शब्द से सन्मान हू ...
मै सिता की शक्ती
भूमी का धैर्य हू ..
मै गंगा की शीतलता
काली का क्रोध हू ...
मै सत्यवती सावित्री
अनुसया की आन हू ..
मै ही चराचर विश्व
संसार की शान हू ...
मै माँ बनकर जनम
पत्नी बनकर संतान देती हू ..
मै ममतामयी नारी
त्रैलोक से भी भारी हू ...
मेरा अपमान मत करना
मेरे बल पर जग चलता है ..
पुरुष जनम लेकर तो
मेरी ही गोद में पलता है ...
"
Web Title: poem by Rohini Anil Dhande
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