"नारी शक्ति
अनभिज्ञ नहीं बस मौन हुँ..
तू जानता नहीं मानव मैं कौन हुँ...
सीता के रूप मेँ भीं छलाई गयी..
अग्निपरीक्षा मे आज भीं जलाई गयी..
जो ले लेती तब सभी के नाम..
तो झूठा होता आज वो राम...
जो एक झलक देकर छुप जाती हैं
चमकती उस बिजली की कौंध मैं हुँ...
अनभिज्ञ नहीं बस मौन हुँ,
तू जानता नहीं मानव मैं कौन हुँ..
आज भीं सब सहती हुँ..
चुपचाप तुम्हारे संग रहती हुँ..
क्युकि रिश्तो का मुझे मान हैं..
सबकी खुशियाँ मेरी शान हैं..
सबकुछ मेरा परिवार हैं..
जीवन हैं मेरा वही संसार हैं..
सबके लिये इतना कुछ करके भीं
हर जगह बस गौण मैं हुँ...
अनभिज नहीं बस मौन हुँ,
तू जानता नहीं मानव मैं कौन हुँ.."
Web Title: poem by Sneha Dhanodkar
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