"नारी हूं मै अभिमान मुझे
नारी हूं मैं अभिमान मुझे, कुछ ऐसा कर जाऊंगी ।
हर क्षेत्र में विजय पताका, बस मै ही लहराऊंगी।
नारी हूं मैं , नारी को सम्मान दिलाऊंगी।
पुरुष प्रधान समाज को नारी प्रधान बनाऊंगी।
नारी को सम्मान मिले,कुछ ऐसा कर जाऊंगी।
नारी हूं मैं , नारी को सशक्त बनाऊंगी।
देश में नारी को ,आगे मैं बढ़ाऊंगी
नारी हूं मै अबला नहीं, यह साबित कर दिखलाऊंगी।
देश में बहादुरी का खिताब अपने नाम कराऊंगी।
पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाऊंगी।
कलयुग की सीता हूं मैं,रावण को मार गिराऊंगी।
दे दो पंख उम्मीदों के ,बड़ी उड़ान भरूंगी।
अपने सारे सपने सच कर दिखलाऊंगी।
इस धरा से उस गगन तक, अपना परचम लहराऊंगी।
जननी, पत्नी ,बेटी बन अपना फर्ज निभाऊंगी।
जरूरत पड़ने पर काली भी मै बन जाउंगी।
कठपुतली नहीं हूं मैं, जो नाच कर दिखाऊंगी।
समाज के बंधनों से मुक्त होकर मैं दिखाऊंगी।
नारी हूं मैं अभिमान मुझे ,कुछ ऐसा कर जाऊंगी।।"
Web Title: Poem by Vandana purohit
आत्मनिर्भर दिवाली की दो प्रतियोगिताओं (कविता-प्रतियोगिता एवं लेखन-प्रतियोगिता) में भाग लें. 2,100/- का प्रथम पुरस्कार... अपनी रचनायें जल्दी भेजें ...