सृष्टि का आधार है नारी poem by Pratibha Dubey

 


विषय - नारी
कभी आग के जैसी पावन, कभी जल की निर्मल धार है नारी
कभी हाथ का कंगन बनती, कभी कहीं तलवार है नारी
कभी कली के जैसी कोमल, कभी हिमगिरि सम विशाल है नारी
बिना शस्त्र जो घायल कर दे, ऐसा तीव्र प्रहार है नारी
आंगन की तुलसी,घर की लक्ष्मी,सुख संपत्ति का भंडार है नारी
पुरुष अगर हैं घर की छत, तो घर की चार दीवार है नारी
कभी पति के प्राणी बचाने, सावित्री यमराज से भी लड़ जाती है
कभी अहिल्या बन के पत्थर,पत्निधर्म निभाती है
पति प्रेम से वंचित उर्मिला, महलों में वनवास बिताती है
तीन बेर का भोजन तज वो,तीन बेर ही खाती है
कभी पति के विरह में व्याकुल, निर्भय हो सती हो जाती है
कभी सतित्व की करने रक्षा, जौहर को गले लगाती है
जिस ईश्वर ने संसार बनाया, उसको धरती पर लाने वाली
कभी कौशल्या कभी यशोदा, सृष्टि का आधार है नारी

Web Title: pratibha dubey


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